माता पिता बनने के बाद पेरैंट्स के लिए यह बड़ी चुनौती होती है कि वे अपने बढ़ते बच्चे को पौटी ट्रेनिंग कैसे दें? यह सही है कि जब बच्चा बैठने लगे तभी से उसे इस की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए, लेकिन कई बार बच्चा पौटी पर बैठते ही रोने लगता है. ऐसे में मातापिता उसे डायपर पहना देते हैं, जिस से उस की बैक में स्किन ऐलर्जी या रैशेज हो जाते हैं, जो उस की नाजुक त्वचा के लिए ठीक नहीं होते. सही ट्रेनिंग से बच्चा खुदबखुद पौटी आने पर बता देता है.

धैर्य से काम लें

इस बारे में मुंबई के जैन हौस्पिटल के शिशु रोग विशेषज्ञ डा. रोहित नार्वेकर कहते हैं कि अधिकतर मातापिता परेशान होते हैं कि वे बच्चे को पौटी ट्रेनिंग कैसे दें? उन के पास धीरज की कमी होती है. इसलिए बच्चा पौटी ट्रेनिंग लेने में असमर्थ होता है. वे सोचते हैं कि उन के बच्चे में कोई समस्या है, जबकि ऐसा कुछ नहीं होता है. कई बार तो वे थकहार कर डायपर पर आश्रित हो जाते हैं. यह सही है कि हर बच्चे की विकास प्रक्रिया एकदूसरे से भिन्न होती है और समय के साथ ही बच्चा सीखता है. लेकिन इन टिप्स के आधार पर बच्चे को पौटी ट्रेनिंग दी जा सकती है:

18 से 20 महीने के बाद से बच्चे को पौटी की ट्रेनिंग दी जा सकती है. जो 2 साल तक चलती है, क्योंकि उस के साथसाथ वह मैच्योर होता है और उसे ठीक तरह से पौटी इंस्ट्रक्शन समझ में आने लगते हैं.

पौटी सीट का साइज बच्चे के अनुसार होना चाहिए ताकि वह उस पर आराम से बैठ सके.

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