इन दिनों लंबी मातृत्वकालीन छुट्टी की बड़ी चर्चा है. लेकिन कुछ तो ऐसी मांएं भी हैं जिन का खुद अपना बच्चा नहीं है, किसी नवजात बच्चे को गोद लिया है. वे मांएं भी लंबे समय से मातृत्वकालीन छुट्टी की मांग कर रही थीं. मातृत्व लाभ कानून 1961 में संशोधन के बाद सरकार ने एक निर्देशिका भी जारी की है कि जिस में दत्तक अवकाश दिए जाने की बात कही गई है. संशोधन के बाद सरोगेट मां यानी किराए पर कोख देने वाली मांओं के लिए भी मातृत्वकालीन अवकाश का प्रावधान किया गया था. इसी साल जनवरी में केंद्र सरकार की ओर से किसी बच्चे को गोद लेने वाली महिलाओं को भी मातृत्वकालीन अवकाश दिए जाने पर विचार की बात कही गई थी.
गौरतलब है कि गोद लेने वाली मांओं के लिए मातृत्वकालीन अवकाश का प्रावधान कुछ राज्यों को छोड़ कर व्यापक तौर पर पूरे देश में लागू नहीं है. जहां लागू है वहां सिर्फ सरकारी महिला कर्मचारियों को ही यह सुविधा मिलती है. अगर निजी कंपनियों की बात करें तो गोद लेने वाली महिलाओं के लिए ऐसा कोई प्रावधान है ही नहीं. इला भसीन (बदला हुआ नाम) एक स्कूल में टीचर हैं. कोलकाता के दक्षिणी उपनगर संतोषपुर में रहती हैं. पिछले साल सितंबर में उन्होंने एक नवजात बच्चे को गोद लिया. दरअसल, उन के महल्ले में कूड़ेदान के पास चिथड़े में लिपटा यह बच्चा उन की आया को मिला. रोज की तरह आया एक दिन सुबह जब काम के लिए निकली, तो उसे महल्ले के कूड़ेदान में बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी. बच्चे को घेरे हुए कौए कांवकांव कर रहे थे. बच्चे को उठा कर वह इला के यहां ले आई. इला ने बच्चे को स्थानीय अस्पताल में भरती कराया. फिर पुलिस को सूचित किया.
पुलिस ने छानबीन की, लेकिन बच्चे को कूड़ेदान के पास छोड़ जाने वाले का पता नहीं चला. अब पुलिस बच्चे को किसी अनाथाश्रम के हवाले करने का विचार कर रही थी. इस बीच, इला ने उस बच्चे को गोद लेना निश्चित कर लिया. तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के बाद बच्चे को वह घर ले आई. अब इस नवजात बच्चे की देखभाल जरूरी थी, सो इला ने अपने स्कूल में छुट्टी की अर्जी दे दी. 135 दिन की छुट्टी मंजूर भी हो गई. छुट्टियां खत्म हो जाने के बाद इला ने जब स्कूल जौइन किया तो पता चला कि वे छुट्टियां उन की अर्जित और मैडिकल छुट्टी से दी गई थीं. साथ में यह भी कि कहा गया कि गोद लिए गए बच्चे की देखभाल के लिए अलग से छुट्टी लेने व दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है.
गोद लेने का चलन
बताया जाता है कि भारत में हर साल लगभग साढ़े 6 हजार बच्चे गोद लिए जाते हैं. जबकि अनाथ बच्चों की संख्या लगभग डेढ़ करोड़ से अधिक बताई जाती है. गोद लेने का चलन सब से ज्यादा बंगाल और महाराष्ट्र में है. लेकिन बंगाल में ज्यादातर लड़कियों को ही गोद लिया जाता है, जबकि महाराष्ट्र में लड़कों को गोद लेने का चलन अधिक है. फिर भी बच्चों को गोद लेने का चलन इन दिनों बढ़ गया है. पिछले 10 सालों में दत्तक कानून में कई सुधार किए गए हैं. लेकिन जहां तक दत्तक अवकाश का सवाल है तो इस मामले में व्यापक स्तर पर कुछ भी नहीं किया गया है. दरअसल, इस बारे में सोचने की जहमत तक नहीं उठाई गई है. व्यापक स्तर पर यह सुविधा प्राप्त करने के लिए लड़ाई अभी बाकी है. इस के लिए कोलकाता की एक स्वयंसेवी संस्था ‘आत्मजा’ लंबे समय से काम कर रही है.
इस सिलसिले में भारत सरकार की निर्देशिका का श्रेय आत्मजा को ही जाता है. संस्था की सदस्य नीलांजना गुप्ता, जिन्होंने खुद भी एक बच्चा दत्तक लिया है, ने सिलसिलेवार कई मुद्दों को उठाया. उन का कहना है कि दत्तक कानून में अभी बहुत सारे सुधारों की जरूरत है. पर विडंबना यह है कि काम बहुत धीमी गति से हो रहा है. नीलांजना गुप्ता जादवपुर विश्वविद्यालय में अंगरेजी की प्राध्यापिका भी हैं, इसीलिए जब उन्होंने एक बच्ची को गोद लिया तो उन्होंने खुद भी अवकाश की जरूरत को महसूस किया. उन का कहना है कि गोद लेने के मामले में आम लोगों में भले ही जागरूकता आई है, लेकिन सरकारें अभी भी सो रही हैं. अगर अवकाश की बात की जाए तो इस के लिए हर राज्य में कानून बनना चाहिए, क्योंकि जन्म देने वाली मां की तुलना में गोद लेने वाली मां को अवकाश की ज्यादा जरूरत है. जन्म देने वाली मां का अपने बच्चे के साथ गर्भ के 9 महीने के दौरान एक आत्मीय संबंध बन जाता है. लेकिन गोद लेने वाली मां और बच्चे के बीच ऐसा संबंध बनने में देर भी लग सकती है. साथ ही, परिवार को भी बच्चे के साथ और बच्चे को परिवार के साथ एडजस्ट करने में भी समय लगता है.
इस संबंध में कोलकाता हाईकोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता अरुणा मुखर्जी बताती हैं कि 2009 में केंद्र सरकार ने एक निर्देश जारी किया था, जिस में कहा गया था कि अधिकतम 1 साल के बच्चे को गोद लेने पर मां को 180 दिनों की एडौप्टिव लीव दी जाएगी, यहां तक कि पिता को भी 15 दिनों की छुट्टी मिलेगी. अरुणा मुखर्जी कहती हैं कि यूजीसी के नियम के तहत कालेज और यूनिवर्सिटी की प्राध्यापिकाएं भी केद्र सरकार के उपरोक्त निर्देश के तहत एडौप्टिव लीव की हकदार हैं.
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों को बच्चा गोद लेने पर दत्तक गृहावकाश के नाम पर 67 दिनों का अवकाश दिए जाने का नियम पहले से ही था. कुछ साल पहले इस नियमावली में संशोधन करते हुए अधिकतम 2 बच्चों के लिए दत्तक गृहावकाश की मंजूरी दी गई है. वहीं, राजस्थान ने भी केंद्र के निर्देश का पालन करते हुए गोद लेने वाली सरकारी महिला कर्मचारी को मातृत्व अवकाश दिए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. इस प्रस्ताव को मंजूरी देने का आधार यह है कि 1 साल से कम उम्र के बच्चे की देखभाल गोद लेने वाली महिला को उसी तरह करनी पड़ती है, जिस तरह बच्चे को जन्म देने वाली मां को करनी पड़ती है. कर्नाटक और असम में भी दत्तक अवकाश का नियम है. बेहतर हो कि इस मामले में संबंधित राज्य के नियमों की जानकारी ले ली जाए. इस मामले में एक समस्या यह है कि लंबी छुट्टी से लौटने के बाद अकसर औरतों में काम के प्रति वह उत्साह नहीं रहता जिस के लिए उन्हें जाना जाता था. दफ्तरों के उबाऊ वातावरण और बच्चे की फिक्र में वे द्वंद्व में रहती हैं. ऐसे में न बच्चे की परवरिश ढंग से हो पाती है, न काम ढंग से हो पाता है. दुनिया के उन देशों में जहां बच्चे देर से किए जा रहे हैं, मातृत्व अवकाश फिर भी चल जाता है क्योंकि 10-15 साल काम करने के बाद 6 माह की छुट्टी कोई खास नहीं होती. पर जहां नौकरी, विवाह और बच्चा 3-4 सालों में हो रहा हो, वहां काम पर लौटने वाली मां आधीअधूरी रह जाती है. कहीं ऐसा न हो कि जिस जैंडर डिस्क्रिमिनेशन से औरतें निकली हैं, वह उस अवकाश के चक्कर में फिर चकतों की तरह उभर आए.
मातृत्व अवकाश के मामले में भारत का स्थान
देश मातृत्व अवकाश
कनाडा 50 सप्ताह
नौर्वे 44 सप्ताह
भारत 26 सप्ताह
ब्रिटेन 20 सप्ताह
स्पेन 16 सप्ताह
फ्रांस 16 सप्ताह
मैक्सिको 15 सप्ताह
दक्षिण अफ्रीका 12 सप्ताह
पाकिस्तान 12 सप्ताह
मांओं की जीत
मातृत्वकालीन अवकाश पर बरसों से चल रही लड़ाई में आखिर मांओं को जीत हासिल हो ही गई. श्रम व रोजगार मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित 1961 में बने कानून में बदलाव को राज्यसभा ने अपनी मंजूरी दे दी है. लोकसभा में इस कानून के पास होने के बाद 18 लाख महिला कर्मचारी इस से लाभान्वित होंगी.
1 2 बच्चों वाली मांओं को 26 सप्ताह का मातृत्व अवकाश मिलेगा. तीसरे बच्चे में या अन्य मामलों में अवकाश की अवधि 12 सप्ताह रहेगी.
2 अवकाश के दौरान महिलाओं को न सिर्फ पूरा वेतन मिलेगा बल्कि 3 हजार रुपए मैटरनिटी बोनस भी मिलेगा.
3 50 से ज्यादा कर्मचारी वाले प्रतिष्ठानों में शिशु कक्ष यानी क्रैच की व्यवस्था अनिवार्य होगी.
4 नवजात बच्चों के लिए क्रैच सुविधा होगी और नवजात शिशु की मां ड्यूटी के दौरान दिन में 4 बार बच्चों से मिलने जा सकेगी. इस सुविधा से स्तनपान न करा पाने के चलते कुपोषण की समस्या का समाधान होगा. गोद लेने वाली मां को जन्म देने वाली मां की तुलना में बच्चे से आत्मीय संबंध बनाने में समय लगता है, सो उस के लिए अवकाश और भी जरूरी है.