75 वर्षीय देवेंद्र कुमार आज दानेदाने को मुहताज हैं. जिन बेटों पर उन्होंने अपना सर्वस्व लुटा दिया वे आज उन्हें दो वक्त की रोटी देने में भी आनाकानी करते हैं. अब देवेंद्रजी उस दिन को कोसकोस कर रोते हैं जिस दिन उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति बेटों के नाम कर दी थी. दरअसल, उस वक्त उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि उन के अपने बच्चे उन के साथ ऐसा दुर्व्यवहार करेंगे. उस समय अगर उन्होंने समझदारी से काम लिया होता तो आज उन की यह दशा न होती. अधिकांश भारतीय परिवारों में बुजुर्ग जैसे ही कामकाज से रिटायरमैंट ले लेते हैं वे सबकुछ बच्चों को सौंप कर जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं. लेकिन उन का यह रवैया आगे चल कर पूरी तरह उन्हें बच्चों पर निर्भर बना देता है और वे अपनी हर जरूरत के लिए बच्चों पर निर्भर हो जाते हैं.
आप के साथ भी कहीं ऐसा न हो, इसलिए जरूरी है जरा सी समझदारी :
जीतेजी कभी भी अपनी संपत्ति का नियंत्रण दूसरों को न सौंपें. बहूबेटों या भाइयों को भी नहीं. पावर औफ अटौर्नी देने से पहले चार बार सोच लें. संबंधों को बदलते समय नहीं लगता. बेहतर होगा कि अपने चहेते के नाम वसीयत लिख दें, जिस से आप की मृत्यु के बाद ही स्वामित्व में परिवर्तन हो. इसे बदलने का मौका भी आप को जीवनपर्यंत मिलेगा.
भारतीय घरों में अकसर रुपएपैसे या जमीनजायदाद व दूसरी धनसंपत्ति के मामले पुरुष ही देखते, संभालते हैं और उन्हीं को पूरी जानकारी भी रहती है. घर की महिलाएं इन मामलों से अनजान रहती हैं. समझदारी इस में है कि पति अपनी पत्नी को भी पूरी जानकारी दे कर रखे और ‘डील’ करने की न सही, रिकौर्ड रखने की आदत जरूर सिखाए. क्योंकि कई बार अगर जीवन की राह पर पति की पहले मृत्यु हो जाए तो पत्नी वित्तीय मामलों से पूरी तरह अनजान होने के कारण अपने अधिकारों से वंचित रह जाती है और बच्चे इस स्थिति का लाभ उठाने लगते हैं.
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