बौलीवुड में पिछले दो तीन वर्षों से सिनेमा में बदलाव की लंबी चौड़ी बातें की जा रही हैं. पर जमीनी हकीकत यह है कि बौलीवुड की कार्यशैली में अभी भी कोई खास बदलाव नहीं आया है. आज भी फिल्मकार लकीर के फकीर बने हुए हैं. आज भी हर फिल्मकार प्रपोजल बनाने में लगा हुआ है. जिसके चलते आज भी गैर फिल्मी परिवारों और छोटे शहरों से आने वाले प्रतिभाशाली कलाकारों को फिल्मों में काम मिलना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. यही वजह है कि ‘‘गैंग आफ वासेपुर’’ के दोनों भागों में सुल्तान का किरदार निभाकर चर्चा में आए अभिनेता पंकज त्रिपाठी का पूरे 12 साल बाद भी संघर्ष खत्म नहीं हुआ है. जबकि वह अब तक ‘‘फुकरे’, ‘सिंघम रिटर्न’, ‘दिलवाले’, ‘मसान’ सहित कई सफलतम व बड़े बजट की फिल्मों का हिस्सा रहे हैं. इन दिनों वह अश्विनी अय्यर तिवारी निर्देशित फिल्म ‘‘निल बटे सन्नाटा’’ में सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल व गणित के शिक्षक की भूमिका को लेकर चर्चा में हैं. पंकज त्रिपाठी का मानना है कि उन्हें फिल्म इंडस्ट्री की अतरंगी चाल समझने में 12 साल लग गए.

आखिर छोटे शहरों से आने वाले प्रतिभाशाली कलाकारों को उनकी प्रतिभा दिखाने का सही अवसर क्यों नहीं मिल पाता? इस पर अपने निजी अनुभवों व समझ के आधार पर अभिनेता पंकज त्रिपाठी कहते हैं- ‘‘संघर्ष करना पड़ा. इसकी मूल वजह यह है कि हम गैर फिल्मी परिवार से आए हैं. फिल्म इंडस्ट्री का हम हिस्सा नहीं थे, तो फिल्म इंडस्ट्री की कार्यशैली वगैरह को समझने में थोड़ा समय लगा. संघर्ष की सबसे बड़ी वजह यह है कि हमारे यहां सिनेमा में प्रोजेक्ट बनते हैं. मैं एक अच्छा अभिनेता हूं, यह बात निर्देशक जानता है. पर वह यह भी जानता है कि यदि वह मुझे लेकर चार करोड़ की फिल्म बनाएगा, तो उसे कोई निर्माता नहीं मिलेगा. तो यहां निर्माता और निर्देशक सभी फिल्म का निर्माण शुरू करने से पहले कागज पर ही लागत वसूल कैसे होगी? इसका गुणा भाग करते हैं.

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