Short Hindi Story: इधर कई दिनों से मैं भी सोच रहा था कि बहुत हो गया जिंदगी के 55 बजट बिना कार के सिटी बसों में धक्के खाते और देते गुजार दिये अब मुझे भी एक फोर व्हीलर यानि कि एक अदद कार ले ही लेना चाहिए . इसके लिए मैंने जरूरी रकम 2 लाख रु जिसे बैंक की भाषा में डाउन पेमेंट कहते हैं जुगाड़ भी ली थी. बाकी 6-8 लाख दूसरे निम्न मध्यमवर्गियों की तरह कर्ज लेने जरूरी जानकारियां भी जुटा ली थीं. यह अब तक की सबसे बड़ी राशि थी जो मेरे बचत खाते में इकट्ठा हुई थी .

एक भारतीय लेखक के लिए इतनी बड़ी राशि जुगाड़ लेना किसी चंद्रयान बना लेने से कम उपलब्धि नहीं होती जो हरेक रचना के पारिश्रमिक के लिए प्रकाशक नाम की शोषक बिरादरी का मोहताज रहता है. अभी चार दिन पहले ही ऐसा ही हजार रु का चेक लेकर बैंक पहुंचा और एंट्री के लिए पासबुक क्लर्क के आगे प्रस्तुत की तो उसने मेरी तरफ जेबी जासूस की तरह देखा और बोला क्या बात है प्रेमचंद जी, लगता है लिखने का धंधा खूब चकाचक चल रहा है. मैंने हमेशा की तरह उसके इस ताने का बुरा नहीं माना .

सालों से मैं अपने इकलौते खाते में चेक ही जमा कर रहा हूं लेकिन बीते 2 सालों से पैसा कम निकाल रहा हूं. बाबू भी मेरे खाते की तरह प्राचीन है जो जानता है कि यह वही शख्स है जो चेक जमा होने के दूसरे दिन से ही बैंक आकर पूछना शुरू कार देता है कि चेक क्लियर हुआ या नहीं जबकि उसे यानि मुझे मालूम है कि इसमें हफ्ता भर तो लग ही जाता है .

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