हिप्स यानी कूल्हे में दर्द महिलाओं की आम परेशानी है. ज्यादातर महिलाएं डाक्टर के पास तब जाती हैं जब दर्द के चलते घरेलू कामकाज करना भी मुश्किल हो जाता है. वरना वे लंबे समय तक उस से जूझती रहती हैं. शरीर का यह हिस्सा होता तो मजबूत है मगर इस की बनावट कुछ ऐसी है कि छोटीछोटी चीजें इस के कामकाज में दिक्कत पैदा कर देती हैं और दर्द शुरू हो जाता है. अकसर दर्द या तकलीफ देने वाला शरीर का यह हिस्सा आखिर है क्या. किन वजहों से हमें यहां परेशानियां होती हैं और उन के लिए हम क्या कर सकते हैं या हमें क्या करना चाहिए.

यह शरीर का सब से बड़ा जौइंट होता है. इस में एक खांचे (सौकेट) में नरम हड्डियां और कड़क हड्डियां कुछ इस तरह से जुड़ी होती हैं कि वे आसानी से हिलडुल सकें. यहां एक तरह का फ्ल्यूड मौजूद होता है जो इस काम में मदद करता है. अगर आप के घर का दरवाजा बंद करने या खोलने पर आवाज करता है तो आप उस के कब्जों में थोड़ा मोबिलऔयल डाल देते हैं, आवाज आनी बंद हो जाती है. बस, कुछ ऐसा ही है यह हिस्सा. यहां भी ढेर सारी मोबिलऔयल्स जैसी चीजें होती हैं.

दर्द के कारण

यह हिस्सा बहुत मजबूत होता है मगर इस में टूटफूट भी होती है. उम्र और इस्तेमाल बढ़ने के साथ हिप्स की मसल्स भी कमजोर पड़ जाती हैं. यहां की नरम हड्डी कमजोर पड़ जाती है या उस में टूटफूट आ जाती है. आप की मूवमैंट को स्मूथ बनाए रखने वाला चिपचिपा द्रव्य पदार्थ भी कम हो जाता है. कहीं जोर से फिसल जाने में हिप की हड्डी में फ्रैक्चर भी आ सकता है. इन में से कोई भी चीज हिप्स में दर्द का कारण बन सकती है. अगर आप को अकसर दर्द होता रहता है तो इन कारणों में से कोई एक बात हो सकती है :

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आर्थ्राइटिस : हिप्स में दर्द का यह सब से बड़ा कारण है, खासकर उम्रदराज लोगों में. आर्थ्राइटिस आप के हिप्स जौइंट में दर्द पैदा करता है. यह नरम हड्डी को काफी कमजोर कर देता है या तोड़ देता है. यह नरम हड्डी (कार्टिलेज) हिप्स की हड्डियों के लिए तकिए की तरह काम करती है. जैसेजैसे आर्थ्राइटिस बढ़ता है, दर्द बढ़ता है. महिलाओं को दर्द के साथसाथ इस हिस्से में जकड़न भी महसूस होने लगती है.

हिप फ्रैक्चर : उम्रदराज लोगों में हिप फ्रैक्चर भी आमतौर पर सामने आता है. उम्र बढ़ने के साथ हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और वे चोट बरदाश्त नहीं कर पातीं. महिलाओं को अकसर बाथरूम में गिरने की वजह से हिप फ्रैक्चर होता है.

टैंडन में चोट : टैंडन जिस्म की मसल्स को हड्डियों से जोड़ने वाली मजबूत रस्सी जैसी चीज होती है. यह काफी ताकतवर होती है. लेकिन अगर किसी झटके या लगातार किसी गलत मूवमैंट की वजह से इसे चोट पहुंच जाए तो यह काफी दर्द देती है. इस का दर्द मसल्स के मुकाबले देर से ठीक होता है.

मसल्स पेन : आप जो भी मूवमैंट करती हैं उस का भार मसल्स, टैंडन और लिगामैंट उठाते हैं. ज्यादा इस्तेमाल और वक्त के साथ ये कमजोर पड़ते जाते हैं और दर्द देना शुरू कर देते हैं. मसल्स में आई चोट या टूटफूट जल्दी भर जाती है, मगर लिगामैंट में कोई टूटफूट आ गई तो लंबे समय के लिए आराम देना पड़ता है. ज्यादा उम्र वाली महिलाओं में अगर लिगामैंट फ्रैक्चर की बात सामने आती है तो उन्हें लंबे समय तक आराम करना पड़ता है.

कैंसर : हड्डियों का कैंसर या हड्डियों तक पहुंच जाने वाला कैंसर शरीर की अन्य हड्डियों के साथसाथ हिप्स में भी दर्द पैदा करता है.

कहां, कैसा दर्द होता है

जांघों में, हिप्स के जोड़ों के भीतर, उन के बाहर की ओर और नितंबों में दर्द होता है. कभीकभी बैकपेन यानी पीठदर्द और हर्निया की वजह से पैदा हुआ दर्द भी यहां तक पहुंच जाता है. अगर दर्द लगातार बढ़ रहा है तो ये आर्थ्राइटिस की निशानी हो सकती है. हलकीफुलकी कसरत, स्ट्रैचिंग व्यायाम इस में मदद करते हैं. फिजियोथैरेपी भी ले सकते हैं. वैसे, स्विमिंग बहुत अच्छी कसरत होती है. यह हड्डियों पर ज्यादा दबाव नहीं डालती. दर्द से नजात पाने के लिए आप दर्द वाले इलाके पर 15 मिनट तक बर्फ रख कर सिंकाई करें. ऐसा आप दिन में 2-3 बार कर सकते हैं.

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डाक्टर से तुरंत मिलें अगर…

  1. गिरने या फिसलने की वजह से हिप्स में दर्द शुरू हुआ हो.
  2. आप के जोड़ की शेप यानी बनावट बिगड़ रही हो.
  3. जब आप को चोट लगी तो आप ने ‘कट’ सी कोई आवाज सुनी हो.
  4. दर्द बहुत तेज है और आप हिप्स पर जरा भी वेट नहीं ले पा रहीं.
  5. सो, कूल्हे में किसी तरह से चोट लगने की वजह से दर्द हो या किसी दूसरी वजह से बहुत ज्यादा दर्द हो तो उसे हलके में न लें, डाक्टर से संपर्क करें.

कूल्हों के दर्द को न करें अनदेखा

लोग कूल्हे के दर्द को लापरवाही के चलते शुरुआत में अनदेखा कर देते हैं और धीरेधीरे जब दर्द असहनीय हो जाता है तो डाक्टर से परामर्श लेते हैं. लेकिन तब तक स्थिति काफी एडवांस स्टेज में पहुंच चुकी होती है. कूल्हे से जुड़ी समस्याओं में सब से प्रमुख एवास्कुलर निक्रोसिस (एवीएन) है. विशेषज्ञों ने माना कि दुनिया के दूसरे देशों के विपरीत हमारे देश में कूल्हे के जोड़ में दर्द का कारण एवीएन है. एवीएन में कूल्हों की हड्डियों को रक्त नहीं मिल पाता और लगातार रक्त की आपूर्ति न होने की वजह से कूल्हे की हड्डियां क्षतिग्रस्त होने लगती हैं. भारत में एवीएन के बढ़ते मामलों के बारे में विस्तार से बताते हुए अमृतसर के जानेमाने और्थोपैडिक व अमनदीप अस्पताल के सीनियर कंसल्टैंट डा. अवतार सिंह कहते हैं, ‘‘भारत के युवाओं में एवीएन के मामले बहुत ज्यादा बढ़ रहे हैं और इसी वजह से हिप रिप्लेसमैंट सर्जरियां बढ़ रही हैं.’’

एवीएन होने के कारणों में सड़क दुर्घटना भी प्रमुख रूप से उभर कर सामने आती है. अकसर बाइकर्स तेज रफ्तार की वजह से दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं. ऐसे में अगर चोट उन के कूल्हे पर लग जाए और समय पर इलाज न कराया जाए तो भी एवीएन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. समय रहते अगर सही तरीके से कूल्हों का इलाज हो जाए तो दुर्घटनाग्रस्त रोगी की जिंदगी आसान हो जाती है. दुर्घटना के बाद रिकवरी में अगर मरीज के सभी अंग ठीक तरीके से काम करें तो उसे सकारात्मक ऊर्जा का एहसास होता है और इस से उस की रिकवरी और तेजी से होती है. दुर्घटना में अगर कूल्हे के जोड़ पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हों तो उसे रिप्लेस करने का सुझाव दिया जाता है.

अपनाएं आधुनिक तरीकों को

एवीएन के अलावा कूल्हों के क्षतिग्रस्त होने का कारण आर्थ्राइटिस भी हो सकता है. इस में रूमेटाइट आर्थ्राइटिस (आरए) के मामले ज्यादा गंभीर हो सकते हैं. आरए औटोइम्यून बीमारी है जिस में इम्यून सिस्टम शरीर को वायरस और बैक्टीरिया से बचाने के बजाय खुद ही जोड़ों पर अटैक करना शुरू कर देता है. असामान्य इम्यून की वजह से जोड़ों में सूजन आ जाती है जिस से जोड़ क्षतिग्रस्त होने लगते हैं. असहनीय दर्द और हड्डियों की गंभीर स्थिति में डाक्टर प्रत्यारोपण की सलाह देते हैं. डा. अवतार सिंह कहते हैं, ‘‘युवा रोगियों के मामले में सक्रिय जिंदगी बिताने के लिए स्थिरता व स्थायित्व 2 महत्त्वपूर्ण मुद्दे होते हैं. ऐसे में आधुनिक तकनीक से लैस कूल्हे का प्रत्यारोपण सब से कारगर इलाज उभर कर सामने आता है.’’

आजकल आधुनिक तकनीकों ने प्रत्यारोपण को आसान कर दिया है. हाल ही में भारत में कूल्हे की प्रत्यारोपण प्रक्रिया में डुअल मोबेल्टी हिप जौंइट सिस्टम बेहद कारगर साबित हुआ है. भारत में यह पहली तरह का हिप सिस्टम है जो हिप जौइंट विकार से जूझ रहे रोगियों को दर्द से नजात दिलाता है, स्थिरता को बढ़ाता है और गतिशीलता की रेंज प्रदान करता है. पारंपरिक हिप रिप्लेसमैंट सिस्टम में स्थिरता की सीमाएं सीमित थीं लेकिन नए हिप प्रत्यारोपण सिस्टम में ये बंदिशें नहीं हैं. युवा रोगियों के लिए यह सिस्टम काफी कारगर है क्योंकि इस की 40-50 साल तक की लंबी अवधि की स्थिरता है. कूल्हे का प्रत्यारोपण इस तरह डिजाइन किया गया है कि वह प्राकृतिक

हिप जौइंट की ही तरह काम करता है. नतीजतन, सर्जरी के बाद रोगी आसानी से सीढि़यां चढ़उतर सकते हैं और रोजमर्रा के सभी काम कर सकते हैं.

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