‘‘लड़ना नहीं पढ़ना जरुरी है’’ का संदेश देने वाले जैगम इमाम की फिल्म ‘अलिफ’ की कहानी वाराणसी के मुस्लिम परिवेश की है. पर फिल्म में मदरसा और कंवेंट एज्यूकेशन के बीच टकराव के साथ साथ इस बात पर करारी चोट की गयी है कि धार्मिक कट्टरता के चलते मुस्लिम समाज किस तरह अपने बच्चों को वास्तविक शिक्षा से दूर रखकर प्रगति को अवरुद्ध कर रहा है. जैगम ने मुस्लिम परिवेश के कथानक वाली इस फिल्म में सवाल उठाया है कि तरक्की की राह में बढ़ रही दुनिया में कौन सी शिक्षा आवश्यक है?

फिल्म ‘‘अलिफ’’ की कहानी अली (मोहम्मद सउद) के परिवार की है. अली के पिता (दानिष हुसेन) हकीम हैं. दादाजान बीमार रहते हैं. मां गृहिणी है.च चेरी बहन (भावना पाणी) शेरो शायरी करती है. अली की फूफीजान (नीलिमा अजीम) पाकिस्तान में रहती हैं. जो कि अपने भाई को अक्सर पत्र लिखते रहती हैं, मगर वह उन्हे जवाब नहीं देते हैं. अली और उसका खास दोस्त (ईशान कौरव) एक साथ मदरसा में पढ़ने जाते हैं. अली पतंग उड़ाने में माहिर है, जबकि शकील को पतंग उड़ाने में अली मदद करता है. सब कुछ ठीक चल रहा होता है. एक दिन अचानक अली की फूफीजान, पाकिस्तान से भारत पहुंच जाती हैं. पिता व अपने भाई से गिले शिकवे खत्म करने के बाद फूफीजान ऐलान कर देती हैं कि अली को वह अपने भाई की तरह हकीम की बजाय डाक्टर बनाना चाहती हैं. इसलिए वह अली को मदरसा की बजाय एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ने भेजना शुरू करवाती हैं. अंग्रेजी स्कूल में अली को तीसरी कक्षा में प्रवेश मिलता है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...