भारत में सब से ज्यादा सोयाबीन की खेती मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व राजस्थान में होती है. मध्य प्रदेश का सोयाबीन उत्पादन में 45 फीसदी हिस्सा है, जबकि सोयाबीन उत्पादन में महाराष्ट्र का 40 फीसदी है.

सोयाबीन एमएसीएस 1407  : यह नई विकसित किस्म असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त है. यह किस्म प्रति हेक्टेयर 39 क्विंटल पैदावार देती है और प्रमुख कीटपतंगों के लिए प्रतिरोधी है.

सोयाबीन की यह किस्म पूर्वोत्तर भारत की वर्षा आधारित परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है. बिना किसी नुकसान के 20 जून से 5 जुलाई के दौरान बोआई के लिए यह अनुकूल है. इस किस्म को तैयार होने में लगभग 100 दिन लगते हैं.

सोयाबीन जेएस 2034 : इस की किस्म की बोआई का उचित समय 15 जून से 30 जून तक का होता है. इस किस्म में दाने का रंग पीला, फूल का रंग सफेद और फलियां फ्लैट होती हैं. यह किस्म कम वर्षा होने पर भी अच्छा उत्पादन देती है.

इस किस्म का उत्पादन तकरीबन एक हेक्टेयर में 24-25 क्विंटल तक होता है. फसल की कटाई 80-85 दिन में हो जाती है.

सोयाबीन फुले संगम/केडीएस

726 : यह किस्म साल 2016 में महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय, राहुरी, महाराष्ट्र द्वारा अनुशंसित किस्म है. इस का पौधा अन्य पौधे के मुकाबले ज्यादा बड़ा और मजबूत है. 3 दानों की फली है. इस में 350 तक ही फलियां लगती हैं. इस का दाना काफी मोटा है.

यह किस्म महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में अधिकतर लगाई जाती है. यह किस्म लीफ स्पौट और स्कैब के लिए भी प्रतिरोधी है. 5 राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में इस किस्म की खेती के लिए सिफारिश की जाती है. यह किस्म  100 से 105 दिनों में तैयार होती है.

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