नई दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के फल एवं बागबानी विभाग ने अंगूर की एक नई किस्म ‘पूसा अदिति’ तैयार की है. इस का विकास उत्तर भारत के इलाकों को ध्यान में रख कर किया गया है.

मिट्टी : अंगूर की बागबानी हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. लेकिन इस के लिए बड़े कणों वाली रेतीली से ले कर मटियार दोमट मिट्टी सब से अच्छी मानी गई है.

खाद व उर्वरक : दक्षिणी भारत में अंगूरों के बागों में सब से ज्यादा खाद व उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाता?है. वैसे यह भी सही?है कि वहां पर उपज भी सब से?ज्यादा यानी तकरीबन 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जाती?है. दरअसल वहां के हालात व जलवायु में काफी मात्रा में खाद व उर्वरकों की जरूरत पड़ती है. वहां पर हर तोड़ाई के बाद अंगूर के बगीचों में खाद डाली जाती है. पहली खुराक में नाइट्रोजन व फास्फोरस की पूरी मात्रा और पोटेशियम की आधी मात्रा दी जाती है. फल लगने के बाद पोटेशियम की बाकी मात्रा दी जाती है.

उत्तर भारत में प्रति लता के हिसाब से हर साल 75 किलोग्राम गोबर की खाद दी जाती है. इस के अलावा हर साल 125-250 किलोग्राम नाइट्रोजन, 62.5-125 किलोग्राम फास्फोरस और 250-375 किलोग्राम पोटेशियम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाला जाता?है.

अंगूर की फसल में 5 साल की बेलों में 500 ग्राम नाइट्रोजन, 700 ग्राम म्यूरेट औफ पोटाश या 700 ग्राम पोटेशियम सल्फेट व 50-60 किलोग्राम नाइट्रोजन की खाद प्रति बेल हर साल देने को कहा जाता है.

काटछांट के तुरंत बाद जनवरी के आखिरी हफ्ते में नाइट्रोजन व पोटाश की आधी मात्रा व फास्फोरस की पूरी मात्रा डालनी चाहिए. बाकी उर्वरकों की मात्रा फल लगने के बाद डाल कर जमीन में अच्छी तरह मिला देना चाहिए. ऐसा करने से अंगूर की भरपूर उपज मिलती है.

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