हर रोज 10 अंगूर खाने से चेहरे का नूर बढ़ता है. बात सही है, क्योंकि पुराने जमाने से ताकत की देशी दवाओं में अंगूरों से द्राक्षासव बनाया जा रहा है. अंगूर उगाने का सिलसिला सदियों पुराना है. अंगूर सुखा कर बनी किशमिश सूखे मेवों में अहम है. पहले गोल व हरे अंगूर खट्टे होते थे. अब नई मीठी व लंबी किस्में आने से अंगूरों की खटास मुहावरों में ही बची?है. किसान अंगूरों की प्रोसेसिंग से बागबानी में कमाई की मिठास बढ़ा सकते?हैं. एक छोटी सी पहल बहुत बड़ा बदलाव ला सकती है. जनकारों के मुताबिक अंगूरों की खेती पहले उत्तर भारत में ही होती थी, लेकिन मुगलों के जमाने में यह उत्तर से दक्षिण चली गई. अब महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मिजोरम व पंजाब वगैरह कई राज्यों में अंगूरों की भरपूर खेती होती है. देश में सब से ज्यादा अंगूर हसन, सांगली, उस्मानाबाद, शोलापुर व चिकमगलूर वगैरह जिलों में उगाए जाते?हैं. इधर पिछले कुछ बरसों से पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा व पंजाब वगैरह में भी किसानों का रुझान अंगूरों की खेती की तरफ बढ़ रहा है.

किसान परेशान

दुनिया भर में अंगूरों का सब से ज्यादा रकबा 13 फीसदी स्पेन का है. भारत का रकबा सिर्फ डेढ़ फीसदी व मुकाम 16 वें नंबर पर है. अंगूरों के कुल उत्पादन में सब से बड़ी हिस्सेदारी 14 फीसदी चीन की है. भारत सिर्फ 1.85 फीसदी अंगूर पैदा कर के दुनिया में 14वें नंबर पर आता है. जाहिर है कि अपने देश में अंगूरों की खेती में अभी बहुत गुंजाइश बाकी है. भारत में अंगूर की खेती का रकबा 117 हेक्टेयर व पैदावार 2483 हजार मीट्रिक टन है. लेकिन ज्यादातर भारतीय अंगूर उत्पादकों का कहना है कि उन्हें अंगूरों की वाजिब कीमत नहीं मिलती. कुछ साल पहले दिल्ली में पंजाब के अंगूरों से भरे ट्रकों पर 20 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से अंगूर बिके थे. चीज कोई भी हो, पैदावार बढ़ने पर माली नुकसान किसानों का ही होता है. बीती 7 अगस्त, 2015 को जालंधर में खफा किसानों ने अपने कई ट्रक आलू मुफ्त लुटा दिए, क्योंकि उन्हें मंडी में सिर्फ 1-2 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से दाम मिल रहे थे. ऐसे?झटकों से किसानों को गहरा सदमा लगता है और तब दूसरों पर से ही नहीं किसानों का यकीन खुद पर से भी उठने लगता है. इस से बचाव का रास्ता यही है कि फार्म से फूड की ओर बढ़ा जाए.

प्रोसेसिंग जरूरी

किसान अंगूर सुखा कर बिना बीज वाले अंगूरों से किशमिश व बीजदार अंगूरों से मुनक्का बना कर ज्यादा कमा सकते हैं. बाजार में फुटकर अंगूर 80-100 रुपए प्रति किलोग्राम और मंडी में थोक में 50-60 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिकताहै, लेकिन किसानों को अपने अंगूरों के महज 25-30 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से ही दाम मिल पाते हैं. आजकल किशमिश करीब 900 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है. अमूमन 4 किलोग्राम अंगूरों से करीब 1 किलोग्राम तक किशमिश बन जाती है. किशमिश बनाने के लिए अंगूरों को 3-4 हफ्ते छांव में सुखाने के बाद जब उन की नमी 75 फीसदी से घट कर 15 फीसदी से कम हो जाए, तो उन्हें धूप में सुखाया जाता है. अब गरम हवा, सुखावक मशीन व लेजर तकनीक से किशमिश जल्दी, ज्यादा व उम्दा क्वालिटी की बनती है.

किशमिश सुनहरी, हरी, पीली व भूरे रंग की होती है. किशमिश का रंग अंगूरों की किस्म, तापमान व सुखाने के तरीके पर टिका रहता?है. बाजार में ज्यादा कीमत लंबी हरी किशमिश की मिलती है. अंगूर से प्रसंस्कृत उत्पाद बनाने की तकनीक ‘राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केंद्र पुणे’ से हासिल की जा सकती है. केंद्र सरकार ने साल 1997 से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केंद्र चला रखा है. इस रिसर्च सेंटर के माहिरों ने अंगूर की ज्यादा उपज देने वाली उम्दा किस्में, अंगूर की खेती की बेहतर तकनीकें व सुधरी मशीनें निकाली हैं. साथ ही वहां रोपण सामग्री मुहैया कराने, उपज को कीटबीमारी से बचाने और किसानों को?ट्रेनिंग व राय देने का काम भी किया जाता?है.

पेय बनाएं

किसान जूसर मशीन लगा कर अंगूररस की बोतलबंदी व अल्यूमीनियम केनिंग की इकाई भी लगा सकते?हैं. ध्यान रखें कि जूस निकालने के बाद अंगूर का कचरा बेकार न जाए. अंगूर में तकरीबन 50 फीसदी गूदा, 40 फीसदी छिलका व 10 फीसदी बीज होते हैं. अंगूर के बीज विटामिन ई का भंडार हैं. उन का तेल बहुत कीमती व फायदेमंद होता है. साथ ही अंगूरों की प्रोसेसिंग से सिरका, जैम व टाफी वगैरह कई दूसरे उत्पाद बना कर बेचे जा सकते?हैं. इन चीजों को बनाने की तकनीक व मशीनें मौजूद हैं. जरूरत किसानों को आगे आ कर अंगूर प्रसंस्करण की इकाई लगाने की है. भारत सरकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने साल 2009 के दौरान पुणे में भारतीय अंगूर प्रसंस्करण बोर्ड बनाया था, ताकि किसानों व उद्यमियों को बढ़ावा मिल सके. हालांकि इस बोर्ड को गठित करने के मकसद व दायरे में सूखे अंगूरों का इलाकाई विकास, अंगूर उत्पादकों के लिए उन की उपज की कीमत बढ़ाना व सहकारी कोशिशों को बढ़ाना जैसे मुद्दे भी हैं, लेकिन इस बोर्ड को अंगूर की प्रोसेसिंग के नाम पर सिर्फ अंगूरी मदिरा ही दिखाई देती?है. लिहाजा बोर्ड की कारगुजारियां मदिरा के इर्दगिर्द ही ज्यादा घूम रही?हैं.

अंगूर निर्यात

अब हमारे देश से खेती की बहुत सी उपज का निर्यात किया जा रहा?है. साल 2013 में 1,74,194 करोड़ रुपए व साल 2014 में 1,95731 करोड़ रुपए कीमत के कृषि उत्पादों का निर्यात किया गया. इन में 88,116 मीट्रिक टन अंगूरों का भी निर्यात किया गया?था. नीदरलैंड, इंगलैंड, रूस, संयुक्त अरबअमीरात, सउदीअरब, जर्मनी, थाईलैंड, श्रीलंका, हांगकांग व बांगलादेश भारतीय अंगूरों के खास ग्राहक हैं. अंगूर निर्यात के बारे में इच्छुक किसान ‘कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, नई दिल्ली’ से ज्यादा जानकारी हासिल कर सकते हैं. खुद निर्यात करने की कूवत न रखने वाले छोटे किसान किसी निर्यातक से तालमेल बना सकते?हैं. जीप व खेती के लिए?ट्रैक्टर वगैरह बनाने वाली ‘महिंद्रा एंड महिंद्रा’ कंपनी महाराष्ट्र में बीते 10 सालों से बड़े पैमाने पर अंगूर का कारोबार कर रही है. किसानों की मदद से आज यह कंपनी देश की सब से बड़ी अंगूर निर्यातक है.

तालमेल से तरक्की

बोपेगांव के किसान दत्तात्रेय ढोंढेराम अंगूर की पैदावार पहले महज 6-7 टन प्रति एकड़ मुश्किल से ले पाते थे. साल 2013 में वे महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी से जुड़े और कंपनी की बताई तकनीक अपनाई. अब वे प्रति एकड़ 10 टन ज्यादा यानी 16-17 टन की पैदावार ले रहे हैं. बीते दिनों के दौरान देश के कई हिस्सों में ज्यादा बारिश होने से किसान फसल खराब होने की वजह से परेशान थे. तब पिंपलगांव के किसान अनिल खुले अपनी डेढ़ एकड़ अंगूर की फसल को बचाने में कामयाब रहे, क्योंकि उन्होंने स्पेन से मंगाई खास किस्म की छतरी प्लास्टिक से अपनी पूरी फसल को ढक दिया. खेती से?ज्यादा कमा कर बचाव करना आसान रहता है. वैसे तो तरक्की के लिए दूसरों की पहल का इंतजार क्यों करना? चाह से राह निकल आती?है. खेती से कमाई बढ़ाने के लिए नुकसान घटाना भी जरूरी?है. मसलन कुल पैदा होने वाले अंगूर का करीब 80 फीसदी फुटकर बिकता है. खराब पैकिंग से नाजुक अंगूर खराब हो जाते?हैं. ज्यादातर किसान नहीं जानते कि एपीडा ने भारतीय पैकेजिंग तकनीक संस्थान की मदद से अंगूरों की पैकिंग करने की खास तकनीक व तरीके निकाले हैं, जिन्हें अपनाना जरूरी?है.

नईनई किस्में

‘भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली’ के माहिरों ने जल्द पकने, पत्तियां झड़ने, मिठास व उपज के लिहाज से अंगूर की 48 नई संकर किस्मों को परखा. उन में आरआईपी 9, आरआईपी 14 व ईआरआर 2 पी 36 बेहतर पाई गईं. इन किस्मों के अंगूरों के गुच्छों का वजन 340 ग्राम तक, लंबाई 24 सेंटीमीटर तक व चौड़ाई 12 सेंटीमीटर तक रही. पूसा स्वर्णिका एचवाई 76-1 किस्म जल्द जारी होगी. बीजदार अंगूरों की किस्मों में रेडग्लोब, अनाबेशाही, बैंगलोर ब्लू, गुलाबी मस्कट व भोंकरी और बिना बीज के अंगूरों में माजरी नवीन, फलेम, परलेट, शरद काला व थामसन ज्यादा बोई जाती?हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के माहिरों ने एच 80, एच 222, एच 541 व एच 382 किस्मों को पहचान कर परखने की सूची में लिया?है, लिहाजा जल्द ही अच्छे नतीजों की उम्मीद?है. ज्यादा जानकारी के लिए इच्छुक किसान इस पते पर संपर्क कर सकते हैं:

निदेशक, राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केंद्र, माजरी, शोलापुर रोड, पुणे (महाराष्ट्र).

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