त्योहारों में दामों में इजाफा होने के आसार जारी है दालों और प्याज का कहर

नई दिल्ली : यकीनन दालें और प्याज आम आदमी की रोजाना की जिंदगी से जुड़ी अहम चीजें हैं. इन चीजों की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लग जाता?है कि इन की किल्लत से तमाम राजनीतिक समीकरण गड़बउ़ा जाते?हैं. आजकल भी कुछ ऐसा ही आलम है. घटिया मानसून की वजह से पैदावार कम होने और त्योहारों के मौसम की वजह से मांग में इजाफा होने से तमाम दालों की कीमतों में 10 से 15 फीसदी तक और इजाफा होने का अंदेशा?है. गड़बड़ाए हालात से निबटने के लिए सरकार को 1 करोड़ टन दाल का आयात करना पड़ सकता?है.  ऐसा ही हाल प्याज का भी लगातार बना हुआ है. पिछले महीने भर से प्याज के तेवर लगातार तने हुए हैं, उन में रत्ती भर भी फर्क नहीं आया?है. प्याज की कीमतें लगातार 80 से 60 रुपए प्रति किलोग्राम पर टिकी हुई हैं. सड़ागला प्याज तक 50 रुपए प्रति किलोग्राम से कम में नहीं मिल रहा है. पिछले महीने भर से सरकार आम लोगों की इन खास चीजों के दाम कम करने की कोशिश में लगी है, मगर नतीजा सिफर रहा है. प्याज 60 और 80 रुपए प्रति किलोग्राम पर अटका है, तो तमाम दालों के दाम 140 से 160 रुपए प्रति किलोग्राम पर टिके हुए हैं. यानी इन चीजों की कीमतें पहले के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा हो गई हैं.

अगस्त महीने की शुरुआत में प्याज के दाम बढ़ने शुरू हो गए थे, तब सरकार ने प्याज का आयात करने का फैसला लिया था. केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय, उपभोक्ता मामले मंत्रालय व वाणिज्य मंत्रालय के मंत्रियों सहित कई बड़े अफसरों की बैठक में दाल व प्याज के 10-10 हजार टन के आयात का फैसला लिया गया था. प्याज व दाल के दामों पर नजर रखने के लिए सरकार की ओर से बाकायदा एक कमेटी भी बनाई गई?थी, मगर करीब डेढ़ महीने गुजर जाने के बावजूद दाल व प्याज की कीमतों पर लगाम लगाने की सरकार की कोशिशें कामयाब नहीं हुईं. अगस्त महीने के अंत में प्याज आयात के लिए मुकर्रर सार्वजनिक कंपनी एमएमटीसी की ओर से बताया गया कि 10 सितंबर तक आयातित प्याज की पहली खेप आ जाएगी, मगर अब अक्तूबर महीने के पहले हफ्ते में आयातित प्याज के आने की उम्मीद की जा रही?है. दाल के मामले में वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मानसून सीजन में औसत से कम पानी बरसने से देश के खास दाल उत्पादक सूबों में पैदावार घटने का अंदश्े है. इन हालात में दलहनों की कुल पैदावार 1.7 करोड़ टन तक सिमट सकती?है, जबकि इन की जरूरत 2.7 करोड़ टन है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...