झारखंड की रा?जधानी रांची के हेसाग स्थित ओल्डएज होम, ‘अपना घर’ में रहने वाली सुदामा की अंतिम यात्रा ने लोगों की आंखें नम कर दीं, जब उन्हें मुखाग्नि उन के बेटे ने नहीं, बल्कि मुंहबोली बेटी सुनीता ने श्मशान घाट पहुंच कर दी. आज से करीब 20 साल पहले सुदामा को ‘अपना घर’ की सिस्टर ने गेट के बाहर दर्द से कराहते हुए पाया था. सिस्टर ने उन्हें अपने यहां पनाह दे दी. 58 वर्षीया सुदामा ने तब बताया था कि उन के अपने बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया. कोई  शख्स उन्हें इस ओल्डएज होम की देहरी तक छोड़ गया था. तब से सुदामा इसी ओल्डएज होम में रहने लगीं. पहले से यहां 20 बुजुर्ग महिलाएं रहती थीं. सुदामा पहले तो उदास और गुमसुम रहतीं पर धीरेधीरे दूसरी महिलाओं से बातें करने लगीं और ओल्डएज होम की महिलाओं को ही अपना परिवार मानने लगीं. यहीं पर सुनीता नाम की लड़की अकसर उन से मिलने आती थी. उस ने सुदामा को अपनी मां माना था. दोनों एकदूसरे से इतनी जुड़ गई थीं कि इस पराई बिटिया ने स्वयं आगे बढ़ कर मृत मां को मुखाग्नि दी और एक बेटे द्वारा किए जाने वाले दूसरे सारे कर्तव्य भी निभाए.

जिस वृद्ध, लाचार महिला को सगे बेटे ने घर से निकाल दिया, उसे एक पराई बेटी ने अपनों से बढ़ कर मान दिया और अंतिम समय तक साथ निभाया. वास्तव में यह घटना पुत्र की कृतघ्नता और पराई बेटी की मानवीयता की अनोखी मिसाल है.

बुजुर्गों की दशा

देश में कुल आबादी का 8 से 9 फीसदी हिस्सा बुजुर्गों का है. पिछले एक दशक में भारत में वृद्धों की आबादी 39.3 फीसदी की दर से बढ़ी है. पर अफसोस की बात यह है कि इन बुजुर्गों के जीवन में अकेलेपन और अपनों के अत्याचार की समस्या भी लगातार बढ़ रही है. गैर सरकारी संगठन, ‘हैल्पएज इंडिया’ द्वारा 8 राज्यों के 12 शहरों में किया गया सर्वेक्षण बताता है कि भारत में करीब 50 फीसदी बुजुर्ग अत्याचार के शिकार हो रहे हैं. पुरुष बुजुर्गों की अपेक्षा महिला बुजुर्गों पर अत्याचार ज्यादा होते हैं. जहां 48 फीसदी बुजुर्ग पुरुष अपनों के अत्याचार के शिकार होते हैं वहीं बुजुर्ग महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा 52 फीसदी है.

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