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‘तो?’ मीनाक्षी ने रोहित की तरफ देखा.

‘देखो मीनाक्षी, हम बच्चा पैदा नहीं कर सकते. इसी तरह की समस्या हमारी भी है. क्यों न हम भी यही करें,’ रोहित ने मीनाक्षी को समझाने का प्रयास किया.

‘तुम्हारा मतलब क्या है?’ मीनाक्षी की त्योरी चढ़ गईं.‘मतलब यह कि उस बच्चे को पैदा तुम करोगी और बाप मैं कहलाऊंगा.’

‘नहीं, रोहित...’ मीनाक्षी भड़क कर खड़ी हो गई, ‘एक पराए पुरुष का वीर्य मेरे गर्भ में जाएगा...वहां धीरेधीरे एक बच्चे का निर्माण होगा. न तुम जानते होगे कि वह बच्चा किस का है. न मैं जानूंगी कि वह वीर्य किस पुरुष का  है. पर जब किसी पराए पुरुष का वीर्य मेरे गर्भ में जाएगा तो मैं पवित्र कहां रहूंगी? पति के अलावा किसी दूसरे पुरुष की सहगामिनी तो बनी...?’

‘लेकिन यह कृत्रिम गर्भाधान होगा... वीर्य इंजैक्शन के सहारे तुम्हारे अंदर डाला जाएगा.’ ‘चाहे जैसे भी हो, शारीरिक मिलन के दौरान भी तो यही क्रिया होती है. फर्क यह है कि यहां बगैर पुरुष को देखे या छुए उस का वीर्य अंदर जाएगा. मैं तुम्हारी बात तो नहीं जानती लेकिन मेरा हृदय इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है.’रोहित खामोश हो गया. मीनाक्षी का कहना भी सही था. जाति, धर्म की तो उसे चिंता नहीं थी, लेकिन बच्चा अपने खानदान, अपने रक्त से तो जुड़ नहीं सकेगा. आजीवन वह उसे अपना बच्चा नहीं समझ पाएगा. क्या मात्र मां के गर्भ में रह कर वह उस का पुत्र हो जाएगा? बचपन से अब तक जो संस्कार उस के अंदर डाले गए हैं कि पिता को अग्नि देने का अधिकार पुत्र को है, क्या वह उसे नकार पाएगा? मीनाक्षी के गर्भ में रह कर, उस की छाती का दूध पी कर वह उस के वात्सल्य का भागीदार तो हो जाएगा, पर क्या उस से भी...?

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