कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘हां... हां... मैं सब समझता हूं कि तुम्हारा क्या चल रहा है,’’ उन की निगाहों में शक साफ झलक रहा था.

औफिस से लौटने में पूर्वा को रोज रात के लगभग 8 बज जाते थे. एक दिन औफिस में पार्टी थी. दूसरे साथियों के आग्रह को वह ठुकरा नहीं सकी और लौटने में उसे 10 बजे गए. वह तेजी से दौड़तीभागती घर पहुंची तो ताऊजी ने ही दरवाजा खोला. उन की आंखों में लाल डोरे तैर रहे थे.

आज उन्होंने उस पर सीधा हमला बोला, ‘‘मैं सब कुछ जानसमझ रहा हूं कि औफिस के नाम पर क्या चल रहा है. शरीर के सारे अंग अलगअलग पैसा कमाने के साधन बन गए हैं. लता मंगेशकर अपने गले की बदौलत धनकुबेर बन बैठी हैं तो सलमान खान हो या प्रियंका चोपड़ा अपनी कमर मटका कर धन कमा रहे हैं. मजदूर बोझा उठा कर पैसा कमा रहा है. नाचने वालियां नाच कर और सैक्स वर्कर अपने शरीर से धन कमा रही हैं.

‘‘यह भौतिकवाद का युग है. जिस के पास जितना अधिक धन है, वह उतना ही सामर्थ्यवान है. मैडमजी, आधुनिक बन कर क्या लड़कियां शरीर बेच कर धन नहीं कमा रही हैं... आप को मुझे सफाई देने की जरूरत नहीं है.’’

पूर्वा भाग कर ताईजी के पास पहुंच गई. इस समय ताऊजी की भावभंगिमा डरावनी लग रही थी. ताईजी ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘कुछ नहीं बिटिया... आज इन्होंने कुछ ज्यादा चढ़ा ली होगी... तुम्हारी फिक्र में सोए न होंगे इसलिए बकबक करने लगे होंगे. हम लोग भी तो बेटीबहू वाले हैं और फिर तुम भी तो हमारी बिटिया ही हो. ऐसी गंदी बात वे सोचते हैं तो इस का पाप तो उन्हें ही लगेगा... शराब व मुराद बड़ी बुरी चीज है. तुम इन की बातों को दिल पर मत लो.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...