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उस की दुखभरी गाथा सुन कर सरिता और विनय की पलकें भीग गईं. बहुत सोच कर सरिता ने पति से कहा, ‘‘क्यों न हम मिनी को अपने साथ ले चलें. हमारा भी तो वहां कोई नहीं है. एक बेटा है जो परिवार सहित दूसरे देश में बस गया है. शायद नियति ने हमें इसी कार्य के लिए यहां भेजा हो.’’ जवाब में विनय कुछ देर चुप रहे, फिर बोले, ‘‘पूछ लो इस लड़की से हमारे साथ चलती है तो चले. इसे भी आसरा मिल जाएगा और हमें भी इस का सहारा.’’

विनय का इतना कहना था कि वह व्यक्ति उन के पैरों से लिपट गया, ‘‘ले जाइए, बाबूजी, बड़ी अच्छी लड़की है. आप दोनों की बड़ी सेवा करेगी. जायदाद बेच कर इस का हिस्सा मैं आप को भेज दूंगा. कहीं कोई सुपात्र मिले, तो इस का ब्याह कर दीजिएगा.’’

‘‘नहींनहीं, कुछ भेजने की आवश्यकता नहीं है. हमारे पास सभी कुछ है. हम इसे ही ले जा कर खुश हो लेंगे.’’ अपने घर का पता और उस व्यक्ति का पता लेते हुए सरिता और विनय लौट आए.

उन के घर पहुंचते ही वसुंधरा अपार्टमैंट में हलचल सी मच गई.

मिनी के लिए सभी की आंखों में उभर आए प्रश्नों को देख कर सरिता खुद को रोक न सकीं, बोलीं, ‘‘हम मथुरा से मिनी को लाए हैं प्यारी सी बेटी के रूप में.’’

कुछ न कहने पर भी सभी समझ ही गए. सब ने मिनी को प्यार से क्या निहारा, कि उसी पल से वह उन की चहेती बन गई.

अब मिनी को समय कहां था कि अपने गुजरे समय को याद कर के आंसू बहाए. पूरी बिल्डिंग की वह दुलारी बन गई थी. किसी की बेटी, तो किसी की ननद. बड़ों की बहन तो छोटों की दीदी. किसी के घर मिनी पकौड़े बना रही है तो कहीं भाजी. किसी का बटन टांक रही है तो किसी के बच्चे को थामे घूम रही है.

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