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दुस्वपन
एक समय था जब संविधा को संगीत का शौक था. कंठ भी मधुर था और हलक भी अच्छा था. विवाह के बाद भी वह संगीत का अभ्यास चालू रखना चाहती थी.
भाग - 1
शादी हुए 30 साल बीत चुके थे. लगभग आधी उम्र बीत चुकी थी उस की. इस के बावजूद अभी भी उस का दिल धड़कता था, मन में डर था. देखा जाए तो वह अभी भी एक तरह से हिरनी की तरह घबराई रहती थी.
भाग - 2
अपनी आवाज में नरमी लाते हुए राजेश ने कहा, ‘‘संविधा, तुम्हें क्या चाहिए? तुम्हें आज यह क्या हो गया है? मुझ से कोई गलती हो गई है क्या? तुम कहो तो...’’ राजेश ने संविधा को समझाने की कोशिश की.
भाग - 3
सुबह जैसे ही मेरी आंख खुली, मैं ने चाय वाले को आवाज दी. पैसे देने के लिए मेरा हाथ मेरी जेब पर गया. लेकिन बटुआ नदारद था. मैं घबरा कर नीचे उतरा और फर्श पर चारों तरफ खोजने लगा.
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