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दोपहर की धूप ढलान पर थी, पर सुनीता की चिंता बढ़ती जा रही थी. पति दीपक घर से सुबह से ही निकले हुए थे. अब तक तो उन्हें वापस आ जाना चाहिए था. इसी उधेड़बुन और इंतजार में बेचैन सुनीता बालकनी में जा कर खड़ी हो गई. मन में विचारों की तरंगें हिलोरें लेने लगीं. ‘शायद रास्ते में ट्रैफिक जाम होगा, इसी वजह से लौटने में इतनी देर हो गई. दिल्ली में कभी भी किसी सड़क पर जाम लग सकता है. सिर्फ एक कप चाय पी हुई है दीपक ने सुबह से. न जाने बेटे के घर कुछ खाने को मिला होगा या नहीं.

अच्छा होता कि मैं भी साथ चली गई होती. बस, यही सोच कर रुक गई कि इतवार की वजह से आज तो लाली भी होगी घर पर. सामना ही नहीं करना चाहती हूं मैं तो उस का. और आकाश बचपन से ही अपने जन्मदिन का इंतजार मेरे हाथों का बना आलमंड केक खाने के लिए ही करता है. न भेजती केक उस के पास तो मेरा दिल दुखता.’

सुनीता और दीपक का डाक्टर बेटा आकाश लगभग 4 महीने से हौस्पिटल के पास ही एक फ्लैट में रह रहा था. एक साल हुआ था उसे डाक्टर बने. हौस्पिटल में उस की नाइट ड्यूटी लग जाती थी तो घर से आनेजाने में परेशानी होती थी. इसलिए ही उस ने हौस्पिटल के नजदीक रहने का निर्णय किया था. छुट्टी वाले दिन वह सुनीता और दीपक के पास आ जाता था पर पिछले 2 महीनों से उस का आना कम ही हो रहा था. लाली से हुआ प्रेमविवाह बेटे और मातापिता के बीच दीवार सा बन गया था.

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