पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि भारतीय जनता पार्टी के अलगाववादी व कट्टरपंथी एजेंडे की बाढ़ को रोका जा सकता है अगर दूसरे नेता सही तौर पर जनहित की छवि बनाए रख सकें. पंचायत चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की लाख कोशिशों, केंद्रीय पुलिस के साए में हिंसा करवाए जाने और राज्यपाल के दखल के बावजूद अगर ममता ने 80 फीसदी से ज्यादा सीटें पा लीं तो इस से यह साबित होता है कि भाजपा का दिल्ली के इंडिया गेट के नजदीक सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगाने का दांव कारगर नहीं हुआ.
लोकतंत्र का असल फायदा तभी है जब हर तरह की पार्टियां शासन में हों चाहे उन का शासन सही हो या न. भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में एक बड़ी उम्मीद जगाई थी कि देश को भ्रष्टाचारमुक्त सरकार मिलेगी और देश प्रगति की राह पर दौड़ेगा. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. सरकारी बयानों में हम दुनिया के बहुत तेजी से प्रगति करते हुए देश हों पर प्रधानमंत्री कार्यालय के 5 किलोमीटर दायरे में बसी सैकड़ों झुग्गियों के लोगों के लिए क्या 1857, क्या 1947, क्या 2014, क्या 2023 सब एक सा हैं. हां, तकनीकी के कारण 2 कमीज की जगह 4 कमीज हो गईं, बिजली मिल गई, मोबाइल हाथ में है.
पर जो सुविधाएं एक चीनी, एक अमेरिकी, एक फिलीपीनी के पास हैं, वे एक आम भारतीय के पास कतई नहीं हैं. देश की उन्नति इसीलिए हर विश्व इंडैक्स में सालदरसाल नीचे सिखक रही है, सिर्फ जनसंख्या बढ़ रही है.
ममता बनर्जी ने रामनवमी यात्राओं, जयश्रीराम के नारों और हिंदूमुसलिम झगड़ों का डट कर मुकाबला कर के ईडी, सीबीआई, एनआईए के प्रहारों के सामने झुके बिना भाजपा के समर्थकों को गांवों में 5-6 पर धकेल दिया.
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