USA : 22 अप्रैल को पहलगाम में जो कत्लेआम हुआ था वह आतंकवाद से भी ज्यादा क्रूर था क्योंकि आमतौर पर आतंकवादी अचानक आते हैं, गोलियां चलाते हैं, फिर भाग जाते हैं. 22 अप्रैल को वे काफी देर तक 2,000 लोगों से भरे मैदान में मौजूद रहे, लोगों से धर्म पूछा, हिंदू बताने पर गोली मारी, औरतों व बच्चों को कुछ कहा नहीं और फिर आराम से निकल गए. जाहिर तौर पर तो आतंकवादियों ने कुछ बेकुसूरों को मौत के घाट उतारा था लेकिन दरअसल उन के निशाने पर थे देश का सम्मान, देश की सुरक्षा और देश के लोगों का अस्तित्व.
इस के लिए अगर 7 मई को औपरेशन सिंदूर के अंतर्गत पाकिस्तान के कई ठिकानों पर भारतीय सीमा के अंदर उड़ते सेना के हवाई जहाजों ने मिसाइलें फेंक कर हमले किए तो उसे गलत नहीं कहा जा सकता अगर सरकार को पक्का पता था कि आतंकी, जिन्होंने 22 अप्रैल को बरसैन मैदान में निर्दोष भारतीयों का खून बहाया था, इन 9 जगहों से आए थे और यहीं कहीं पर शरण लिए हुए थे. वे ही नहीं, इन्हीं ठिकानों पर उन के सरगना व दूसरे आतंकी भी पनाह लिए हुए थे.
अगर यह औपरेशन केवल आतंक का प्रशिक्षण देने वाले केंद्रों को नष्ट करने के लिए किया गया था तो यह जरूरी था कि पाकिस्तान व भारत के सीमाई इलाके में ही नहीं, पूरे पाकिस्तान में जहां भी ऐसे केंद्र हैं सभी को नष्ट किया जाता तो औपरेशन सिंदूर की सफलता पूरी होती. जितना हुआ उस से नहीं लगता कि पाकिस्तान में आतंकियों की फैक्ट्रियां हमेशा के लिए जला डाली गई हैं.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीच में पड़ कर, आदेश दे कर, यह युद्ध रुकवा दिया तो साफ जाहिर है कि भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के और उन के सहायकों में रीढ़ की हड्डियां नहीं हैं कि वे डोनाल्ड ट्रंप से ‘न’ कह सकें.
यह तो बेहद अफसोस की बात है कि भारत ने ऐक्शन शुरू किया लेकिन 5,000 किलोमीटर दूर व्हाइट हाउस में बैठे डोनाल्ड ट्रंप की एक घुड़की पर दोनों पक्ष एकदम चुप हो गए. भारत जो आतंकवाद का लगातार शिकार रहा है वह अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर पाया, ट्रंप के आगे झुक गया. आखिर क्यों?
भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में चौथी है. हमारी सेना की गिनती 4 बड़े देशों में आती है. हमारे पास लड़ाकू हवाई जहाज, तोपें, राडार, ड्रोन, नेवी, एयरक्राफ्ट कैरियर, मिसाइलें ही नहीं, न्यूक्लियर बमों का बड़ा स्टौक भी है. फिर हम अपना मकसद पूरा किए बिना रुके क्यों?
पाकिस्तान ने यह नहीं माना है कि पहलगाम में भेजे गए आतंकवादियों को वह पकड़ कर भारत को सौंप देगा. हम ने यह पता नहीं किया है कि उन आतंकवादियों को किस क्रूर शख्स ने भारत भेजा था. जिन 9 ठिकानों पर 7 मई की रात को हम ने मिसाइलों से हमले किए थे और जो नुकसान पहुंचाया था उन में पहलगाम के आतंकवादी या उन को भेजने वाले लीडर थे, हम इस पर पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकते.
हमें सही पता होता तो हम 9 पर नहीं बल्कि 1 ठिकाने पर ही हमला करते जैसे अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को मार डालने के लिए रावलपिंडी के निकट एबटाबाद पर ही हमला किया था.
अगर सटीक पता नहीं था तो बेकार में अरबों रुपए खर्च कर के हम ने अंधेरे में तीर क्यों चलाए, यह सवाल तो पैदा होता है.
रामकथा के अनुसार, राम ने रावण की लंका पर युद्ध तब शुरू किया जब हनुमान ने पक्का कर लिया कि सीता उसी अशोकवाटिका में है जो रावण के राज में है. वहां राम को मालूम था कि रावण कौन सी लंका में है. अब की बार हमला हम ने क्या यों ही सिर्फ पाकिस्तान को दंड देने या देश की जनता को बहलाने-बहकाने के लिए किया था, फिर तो, डोनाल्ड ट्रंप के कहने पर रोक देना सही है. वैसे, उस डोनाल्ड ट्रंप को हमारे बीच में पड़ने की जरूरत नहीं थी क्योंकि ट्रंप के ट्वीट के कुछ घंटे पहले ही अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस, जिन की पत्नी ऊषा भारतीय मूल की हैं, ने कहा था कि अमेरिका को कोई रुचि नहीं है कि वह इस मामले में दखल दे.
आतंकवादियों को सबक सिखाए बिना, उन के सरगनाओं को पकड़े बिना, पहलगाम में पहुंचे बंदूकधारियों को दंड दिए बिना सैनिक कार्रवाई रोक देना देश के मकसद को अधूरा छोड़ देने जैसा है जिस पर खर्च तो बहुत हुआ ही, आगे उसे पूरा करने के रास्ते भी बंद हो गए.