उम्मीद तो नहीं थी कि 2020 की फरवरी में उत्तरी दिल्ली में कराए गए मुसलिमों के खिलाफ दंगों, आगजनी और हत्याओं पर किसी हिंदू को भी सजा मिलेगी पर पहली कोर्ट ने एक दिनेश यादव को गुनाहगार मान ही लिया है. वह एक घर जलाने का अपराधी माना गया है जिस में 73 साल की मुसलिम औरत जल कर मर गई.

पुलिस और गवाहों की मिलीभगत से कई दशकों से सत्ता में बैठी पार्टी के गुर्गों के लिए कुकर्मी पर सजा कम है, मिल पाती है. 1984 के दंगों में 2-4 को सजा मिली, मेरठ के ङ्क्षहदूमुसलिम दंगों में नहीं मिली, 2002 के गुजरात के दंगों में नहीं मिली और उत्तरी दिल्ली के दंगों में बीसियों मुसलिम आज भी गिरफ्तार है. पर हिंदू दंगाई आजाद है और एकदो को पहली अदालत ने सजा दी है और शायद ऊंची अदालतों तक यह भी खत्म हो जाएगी.

हमारी क्रिमीनल कानून व्यवस्था ही ऐसी है कि गुनाहगारों को अगर सजा देती है तो अदालत में मामला जाने से पहले दे दो, जमानत न दो. इस चक्कर में गुनाहगाहर और बेगुनाह दोनों फंस जाते हैं. 200-300 की हिंदूओं की भीड़ में से केवल एक को अपराधी मान कर न्याय का कचूमर निकाला गया है. इस भीड़ ने मकानों पर हमला किया, लूटा और फिर वहां दुबके छिपे लोगों के साथ मकान को बिना डरे आग लगा दी और फैसला अभी झोल लिए हुए है कि वह अपराधी भीड़ का हिस्सा था और भीड़ के लूट व हत्या की. यह फैसला ऐसा है जो अपील में बदला जाए तो बड़ी बात नहीं.

आज भी इस इलाके में डर का माहौल यह है कि भीड़ में चेहरे पहचानने वाले केवल पुलिस वाले गवाह है, आम आदमी नहीं. जो मरे उन के रिश्तेदार भी चुप हैं. क्योंकि वे जानते हैं कि इस तरह के दंगों में किसी को सजा न देने का पुरानी परंपरा है और इक्केदुक्के मामलों में सजा पहली अदालत ने दे भी दी तो बाद में छूट जाएंगे.

हिंदूमुसलिम दंगों या हिंदू सिख दंगों में खुलेआम हत्याएं हुर्ई और लूट व आगजनी हुई पर गिरफ्तार मुट्ठीभर लोग हुए और वे भी एकएक कर के छूट गए. हां उन में से कुछ को लंबे समय अदालतों के चक्कर काटने पड़े जो अपनेआप में किसी सजा से कम नहीं है. पर यह तो लाखों बेगुनाहों को करना होता जिन्हें जैसेतैसे पुलिस के हां करने पर जमानत मिल ही जाती है.

धर्म किसी को सुधारता है, आदमी बनाता है, सच बोलना सिखाता है, अच्छे काम करने का रास्ता दिखाता है, गलत कामों से रोकता है, यह सब ख्याली पुलाव है और धाॢमक दंगे इसकी पोल खोलते हैं. आज नहीं हमेशा से, भारत में ही नहीं दुनिया भर में, औरत, जमीन और पैसे पर नहीं धर्म पर ज्यादा मारकाट हुई है और मारने और लूटनेवालों के हमेशा अपने धर्म से धर्म की रक्षा करने की वाहवाई मिली है. हर धाॢमक नेता के पीछ कोई बड़ा अपराध या बड़ा अपराधी है. फिर भी लोगों को कहा जाता है कि धर्म के सहारे ही समाज टिका है.

उत्तरी दिल्ली के कई मामलों में फैसले आने हैं पर वे कुछ अच्छा फैसला देंगे या आरोप पैदा करेंगे, इस का भरोसा कम है. अदालत तो वही देखेंगी न जो दिखाया जाएगा.

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