चंद्रयान-3 के लैंडर मौड्यूल का सफलतापूर्वक चांद पर उतरना देश के वैज्ञानिकों की अभूतपूर्व सफलता है और पूरे देश को आज अपने वैज्ञानिकों पर गर्व है. 3,80,000 किलोमीटर का सफर तय करा कर, प्रोपल्शन मौड्यूल से चंद्रयान-3 को उतारना व उस की सौफ्ट लैंडिंग करवाने में वैज्ञानिकों को कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी, आम भारतीय इस की बस, कल्पना कर सकता है.

चांद पर पहुंचने का काम दुनिया के कई देशों ने पहले शुरू कर दिया था और 21 जुलाई, 1969 को अमेरिका ने पहला व्यक्ति नील आर्मस्ट्रौंग को वहां उतार कर दुनिया के दूसरे देशों के लिए एक चुनौती फेंकी थी. देर से ही सही, भारत ने अपने सीमित साधनों के बावजूद उस दिशा में एक मजबूत कदम रख दिया है. आदमी को पहुंचाने के लक्ष्य में अभी बहुत देर है.

इंडियन स्पेस रिसर्च और्गेनाइजेशन का यह संकल्प कि हम ऐसा कुछ कर सकते हैं, दशकों पहले दिखाने लगा था और 2008 में तो चंद्रयान-1 ने खुद को चांद की कक्षा में स्थापित भी कर लिया था.

चंद्रयान-2 के लैंडिंग मौड्यूल के 2019 में गिरने से हताशा हुई थी, लेकिन आज 2023 में भारतीय वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया कि वे किसी भी गलती से निराशा नहीं पालते, बल्कि उस से सीखते हैं.

दुनिया में भारत की छवि गरीब व पिछड़े देश की है. इस के बावजूद हमारे वैज्ञानिकों की श्रेष्ठता सिद्ध करती है कि उन में किसी भी तरह की नई खोज करने, घंटों, दिनों, सप्ताहों तक गणना करने, सही हार्डवेयर व सौफ्टवेयर बनाने में कोई कमी नहीं है और उन्हें सही मार्गदर्शन व काम करने की स्वतंत्रता चाहिए.

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