प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पाक अधिकृत कश्मीर पर दावा करना और पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में आजादी की मांग करने वालों को समर्थन देने का ऐलान करना भारतीय वोटरों को भरमाने के अलावा कुछ नहीं है. पाक अधिकृत कश्मीर को हम अपने मानचित्रों में चाहे जितना दर्शा लें, यह सच है कि एक लंबी, भीषण आणविक लड़ाई के बिना इस मामले का फैसला होना असंभव है. इसी तरह नवाज शरीफ  अगर चाहें कि जम्मू और कश्मीर घाटी कभी पाकिस्तान का हिस्सा बनेंगे तो यह 100-200 साल नहीं हो सकता.

यह सही है कि भारतीय नेताओं के लिए घाटी के मुसलिम कश्मीरियों को संभालना मुश्किल हो रहा है पर फिर भी आशा नहीं छोड़ी जा सकती कि कश्मीरी युवा बड़े, संभले हुए, कानून व्यवस्था वाले भारत का हिस्सा बनना पसंद करेंगे न कि खुद बिखराव के कगार पर बैठे, भ्रष्टाचार में गले तक डूबे, कट्टर, चीन की गोद में पल रहे पाकिस्तान के साथ जाने के.

वर्तमान जद्दोजेहद में बंदूकों का इस्तेमाल न होना और केवल पथराव से विरोध दर्शाना बताता है कि कश्मीरी पढ़ालिखा युवा अब शांति की, लेकिन इज्जतवाली, जिंदगी चाहता है जो उसे वर्तमान राज्य सरकार व केंद्रीय सरकार से मिलती नहीं दिख रही.

कश्मीरी युवा दुनिया के दूसरे युवाओं की तरह अब अपनी जगह खुद बनाना चाहता है. उसे न इसलाम से मतलब है, न शरीयत से, न जमीन के इतिहास से. कश्मीरियों को ही क्यों कहें, भारत का हर युवा चाहता तो यही है कि उसे यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में जगह मिल जाए. उस के लिए भारत का इतिहास, भारत की राजनीति बेमतलब की है. वह अपना भविष्य बनाना चाहता है और उसे विश्वास है कि भारत में उस का भविष्य नहीं बनेगा.

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