इन छुट्टियों में क्या किया है या करने वाले हैं? वही आरामतलबी न? देर से उठना, मोबाइल पर चिपके रहना. बारबार कोक को गले में उड़ेलना. कभी इस पर तो कभी उस पर झल्लाना. हो सके तो दोस्तों के साथ 7-8 दिन के लिए कहीं दूसरे शहर घूमफिर आना. पर यह जीवन नहीं है. यह उम्र बचपन व जवानी के बीच की है जब एक पौधा अपनी जगह बनाता है. अपनी जड़ें गहरी करता है. शाखाएं मोटी करता है पर इस के लिए कमजोर पौधे को मेहनत करनी पड़ती है, उसे धूप का क्लोरोफौर्म कार्बन में बदलना होता है, जड़ों से मिट्टी के मिनरल जमा करने होते हैं ताकि एक मजबूत पेड़ बना जा सके.

अपनी मजबूती दिखाने के लिए आज के किशोरों के पास ज्यादा कुछ नहीं है. 2-3 पीढ़ी पहले 12-14 साल के बेटों को काम पर ले जाया जाता था, तो बेटियों को रसोई के काम सौंप दिए जाते थे. आज लाडप्यार में मातापिता इन को नर्सरी में रखते हैं, सुरक्षित रखते हैं. इन के मनोरंजन का भी पूरा खयाल रखते हैं, लेकिन मजबूती का नहीं. जरूरत है छुट्टियों का सही उपयोग करने की. इन दिनों घर की पूरी सफाई कर डालें. मां के काम में हाथ बटाएं व रसोई का काम सीखें. पिताजी के बाहर के अधिकतर काम कर डालें. बैंक, पोस्टऔफिस में कैसे काम करते हैं, सीख आएं. कार या बाइक कैसे ठीक होती हैं, समझ लें. बिजली का छोटामोटा काम कैसे करें, जान लें. जानकारी जो स्कूली कोर्स में नहीं है, किताबों में नहीं है पता कर लें. आज के किशोर के पास तो मोबाइल भी है, जिस में क्या कैसे होता है या होना चाहिए, यह ज्ञान भरा पड़ा है. मोबाइल सिर्फ कान में इयरफोन लगा कर गाने सुनने या बातें करने के लिए ही नहीं है.

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