लड़ाई की लाठियां बजाना आसान है पर देशों के लिए लड़ाई उतनी ही महंगी होती है जितनी 2 किसानों के लिए जो खेत की हदबंदी पर झगड़ रहे हों. भारतीय सेना पर देश को भरोसा है पर यह भरोसा तभी तक कायम रह सकता है जब तक देश सेना को खासा पैसा देता रहे. खाली पेटों से लड़ाइयां नहीं लड़ी जातीं. देश की जातिप्रथा का छिपा मतलब हमेशा यही रहा है कि पिछड़ों व दलितों को हमेशा खाली हाथ रखो ताकि वे कभी भी पंडों, बनियों, राजपूतों के खिलाफ न खड़े हो सकें.

भारत पाकिस्तान दोनों की सेनाओं के साथ यही हाल है. पाकिस्तान के पास भारत से कम पैसा है पर उसे लगातार अमेरिका, सऊदी अरब, चीन से पैसा मिलता आया है. भारत के नेताओं की अकड़ कुछ ज्यादा रही है और इसलिए सैनिक सहायता हमेशा न के बराबर मिली है. सेना के लिए देश को पेट काट कर सामान खरीदना पड़ा है और अगर राफेल हवाई जहाज यूपीए सरकार ने पहले नहीं खरीदे और मोदी सरकार ने भी आखिर में फैसला किया तो इसलिए कि पैसा दिख नहीं रहा था.

सेना की अपनी जानकारी के हिसाब से पिछले 1 साल में वायु सेना ने अरबों रुपए की लागत के 16 हवाईजहाज दुर्घटनाओं में तकनीकी खराबियों की वजह से खो दिए. इन में 2 मिग बाइसन, 2 जगुआर, 2 मिग 27, मिराज हैलीकौप्टर, 2 हौक, कई ट्रांसपोर्ट हवाईजहाज शामिल हैं. इतने हवाईजहाजों का गिरना और उन में सैनिकों का बिना युद्ध के मरना एक खतरे की घंटी है. मिगों को तो उड़ते ताबूत कहा जाने लगा है. ये रूसी विमान बनावट में ही कमजोर हैं पर चूंकि दूसरे देशों से अच्छे मिल ही नहीं रहे, इन्हें खरीदना पड़ रहा है.

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