जीवन की दौड़ अब लंबी चलने लगी है, औरतों के लिए भी. पहले जैसे ही बच्चे बड़े हुए और घर से ज्यादा घर से बाहर रहने लगें तो समझो मां बस एक चौकीदार की तरह घर में रहती है. यह कामकाजी और प्रसिद्घ कैरियर वालियों के साथ भी होता रहा है. अभिनेत्रियों को घरों में बंद हो कर रह जाना पड़ता था या फिर शादी कर के गुमनामी में जीवन गुजारने को मजबूर होना पड़ता है. अब दिन फिर रहे हैं.

श्रीदेवी ने फिल्म ‘इंग्लिश विंगलिश’ से नाम कमाया और अब उस की 300वीं फिल्म रिलीज होने वाली है. रानी मुखर्जी फिल्म ‘हिचकी’ में अभिनय कर रही हैं. काजोल तमिल फिल्म में धनुष के साथ काम कर रही हैं. ऐश्वर्या राय बच्चन भी कई फिल्मों में प्रयास कर रही हैं.

असल में बच्चों के बड़े हो जाने के बाद मांओं के पास अपार अवसर होते हैं पर कुछ पारिवारिक दबाव, रीतिरिवाजों और खुद के ओढ़े आलस्यपन के कारण औरतें 40 की उम्र में घर में बैठ जाना चाहती हैं. जो काम कर रही होती हैं, वे भी नए प्रयोग छोड़ देती हैं और जहां है, जैसा है को स्वीकार कर लेती हैं. एक तरह से उन को जंग लग जाता है.

यह ठीक है कि हरेक के पास बहुत कुछ करने के न अवसर होते हैं न हुनर पर यदि आंखें खोल कर चला जाए और व्हाट्सऐप और किट्टी पार्टियों को छोड़ कर कुछ आगे की सोची जाए तो पुन: कैरियर बनाना संभव है. बच्चों को पैदा करना, बड़ा करना, उन के लिए सुरक्षित घर तैयार करना एक कैरियर है पर जब इस कैरियर में संतोष मिलना कम हो जाए तो समय और शक्ति बेकार करने की जगह कुछ नया करने को तैयार रहें. किट्टी पार्टियां, सत्संग, भजन मंडली और सोशल मीडिया क्रिएटिविटी को मारते हैं. ये औरतों के विकास व आत्मविश्वास में बाधक हैं.

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