विदेशों में बसे भारतीय आजकल ज्यादा कट्टर और जातिवादी होते जा रहे हैं. उन्होंने उन समाजों के गुण नहीं अपनाए जिन्होंने उन्हें शरण दी और अच्छा कमाने के अवसर दिए. वे भारत के प्रति 50 वर्षों पुरानी सोच रखते हैं और अपने पैसे के घमंड पर भारत की सरकार, नेताओं व जनता को उपदेश देना अब अपना नैसर्गिक अधिकार समझते हैं.

उन्हीं को पटाने के चक्कर में राहुल गांधी ने न्यूयौर्क  की एक सभा में कह दिया कि केवल वहां उपस्थित आप्रवासी भारतीय ही नहीं, गांधी, अंबेडकर, पटेल, नेहरू जैसे भी एनआरआई ही थे. राहुल गांधी की यह चेष्टा भारतीय जनता पार्टी को बहुत नागवार लगी है क्योंकि इन कट्टर आप्रवासियों की भारत में धर्मराज स्थापित करने में बहुत सहायता ली जा रही थी. राहुल गांधी ने उन का संबंध कांग्रेस से जोड़ कर भाजपाई मंसूबे में सेंध लगाई है.

गांधी को एनआरआई कहने पर भारत में राहुल गांधी की खिंचाई करने की काफी कोशिशें हो रही हैं जबकि सच यही है. मोहनदास करमचंद गांधी अन्य गुजराती बनियों की तरह कुछ कमाने के लिए इंगलैंड गए थे. और फिर उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में प्रैक्टिस शुरू की थी. अगर विदेश में रह कर कमा रहे थे, तो आज की परिभाषा के अनुसार वे एनआरआई ही थे. इस तरह की बहुत बातें नरेंद्र मोदी खुद विदेशों में बसे भारतीयों से कहते रहे हैं.

एक तरह से तो जब विदेशी नागरिकता प्राप्त मूल भारतीय विदेश में भारतीय नेता से मिलता है तो वह अपने मौजूदा देश के प्रति अपराध करता है. हमारे अपने राष्ट्रप्रेम की परिभाषा कहती है कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति न केवल अपनी सरकार के प्रति निष्ठा रखे, यहां की संस्कृति, सोच, कट्टरता, गंदगी, रिश्वतखोरी की प्रशंसा भी करे. यदि वह कहीं बाहर से आया है तो उस पर दोहरीतिहरी शर्तें अनायास लगाई जाती हैं. 1962 के युद्ध में भारत सरकार ने भारत में रह रहे चीनी मूल के भारतीय नागरिकों को कई महीनों तक जेल में रखा था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...