नीरा को स्लीवलैस ड्रैस पहनने का बहुत शौक है, मगर जब भी वह पहनना चाहती है, रमेश हमेशा कोई न कोई बहाना बना कर उसे ड्रैस पहनने से रोक देता है. आज तो हद ही हो गई, जब रमेश के साथ पार्टी में जाने के लिए नीरा ने ब्लैक साड़ी के साथ ग्रे कलर का डिजाइनर स्लीवलैस ब्लाउज निकाला, तो रमेश ने यह कहते हुए टोक दिया कि कुछ और ट्राई करो. नीरा के अंदर दबा आक्रोश बाहर निकल आया. बोली ‘‘तुम मर्द सारे एक जैसे होते हो. दूसरी औरतें तो स्लीवलैस में बहुत सैक्सी लगती हैं, मगर बीवी पहने तो कुछ और ट्राई करो. वही पुरानी दकियानूसी सोच.’’

सुन कर रमेश को भी गुस्सा आ गया. कहने लगा, ‘‘कभी ध्यान दिया है अपनी थुलथुली बांहों की तरफ? और ये बगलों से झांकते बाल, जो भी देखेगा, तुम्हें सैक्सी नहीं फूहड़ कहेगा. मनचाहा पहनने के लिए केवल मन का चाहना ही काफी नहीं होता, उस लायक शरीर भी तो होना चाहिए.’’ नीरा जैसे आसमान से गिरी. मगर सच ही तो कह रहा है रमेश. महीनों हो जाते हैं उसे पार्लर जा कर वैक्स करवाए और घर पर करने में भी अकसर आलस ही कर जाती है. उस की बांहें भी बाकी शरीर के अनुपात में सचमुच कुछ ज्यादा ही भारी हैं.

नीरा ने मुंह से तो कुछ नहीं कहा, मगर मन ही मन ठान लिया कि वह अपनी बांहों को सुडौल बना कर ही रहेगी ताकि अपनी मनचाही पोशाक पहन सके. रमेश के औफिस जाते ही उस ने इंटरनैट पर सर्च कर के थुलथुली बांहों को सुडौल बनाने वाली कई तरह की ऐक्सरसाइज ढूंढ़ीं और फिर उन्हें करने का सही तरीका भी यूट्यूब पर देखा. बस फिर क्या था. नीरा जुट गईर् बांहों को संवारने में जीजान से. 3 महीने की लगातार ऐक्सरसाइज से उसे खुद में आशातीत सुधार नजर आया. कुछ आत्मविश्वास जागा. लगभग 6 महीनों में उस ने अपनी मनचाही बांहें पा ही लीं. फिर पार्लर जा कर अंडरआर्म्स और फुल हैंड वैक्स करवा आई. शाम को स्लीवलैस ड्रैस पहन कर तैयार हुई, तो रमेश उसे देखता ही रह गया. कह उठा, ‘‘इसे कहते हैं सैक्सी.’’ नीरा की ही तरह संगीता को भी मौडर्र्न ड्रैसेज बहुत भाती थीं. मगर जब वह अपने लटके और झुर्रियों भरे पेट पर क्रौप टौप पहन कर किट्टी पार्टी में आती, तो सभी महिलाएं दबी हंसी से उस का मजाक उड़ाती थी. लेकिन सब से बेखबर वैस्टर्न की दीवानी संगीता बस खुद पर ही रीझती रहती.

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