महाराष्ट्र की राजधानी पूना के कांत्रज गांव की सडक़ पर चल रहे उस बूढ़े को जिस ने भी देखा, डर से उस का शरीर सिहर उठा. इस की वजह यह थी कि उस के एक हाथ में खून में डूबी कुल्हाड़ी थी तो दूसरे हाथ में एक महिला का सिर, जिस से उस समय भी खून टपक रहा था. वह तेजी से थाना भारती विद्यापीठ की ओर चला जा रहा था.
बूढ़े को उस हालत में जाते देख कुछ लोग मोबाइल से उस की वीडियो बना रहे थे तो कुछ लोगों ने इस बात की सूचना पुलिस कंट्रौल रूम को दे दी थी. वह थाना भारती विद्यापीठ के पास स्थित चौराहे पर पहुंचा तो चौराहे पर तैनात ट्रैफिक पुलिस ने उसे रोक लिया. लेकिन उन की हिम्मत उस बूढ़े के करीब जाने की नहीं हुई. इस की वजह यह थी उस समय वह बूढ़ा जिस हालत में था, उस की मानसिक स्थिति का पता लगाना मुश्किल था.
ट्रैफिक पुलिस उसे समझाबुझा कर खून से सनी कुल्हाड़ी अपने कब्जे में लेने के बारे में सोच रही थी कि थाना भारती विद्यापीठ के असिस्टैंट इंसपेक्टर संजय चव्हाण, हैडकांस्टेबल राहुल कदम, कांस्टेबल मुकुंद पवार वहां पहुंच गए. संजय चव्हाण ने उस के करीब जा कर विनम्रता से उसे समझाते हुए कुल्हाड़ी और सिर को जमीन पर रखने को कहा तो उस ने कुल्हाड़ी तो जमीन पर रख दी, लेकिन सिर नहीं रखा. वह सिर को ले जा कर तालाब में फेंकना चाहता था.
काफी कोशिश के बाद भी जब बूढ़ा नहीं माना तो पुलिस ने कुल्हाड़ी कब्जे में ले कर उसे दबोच लिया और थाने ले आई. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने अपना नाम रामचंद्र उर्फ रामू चव्हाण बताया. उस ने जो सिर ले रखा था, वह उस की पत्नी सोनबाई का था. पत्नी की हत्या कर के वह उस का सिर काट कर तालाब में फेंकने जा रहा था.
थाना भारती विद्यापीठ के थानाप्रभारी सीनियर इंसपेक्टर मङ्क्षछद्र चव्हाण को भी सूचना दे दी गई थी. वह तुरंत थाने आ गए और रामचंद्र से सरसरी तौर पर पूछताछ कर उस के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करा दिया. इस के बाद वह संजय चव्हाण, इंसपेक्टर (क्राइम) श्रीकांत शिंदे, पुलिस नाइक राहुल कदम, कांस्टेबल मुकुंद पवार और असिस्टैंट इंसपेक्टर राहुल गौड के अलावा पत्नी की सिर काट कर हत्या करने वाले रामचंद्र को साथ ले कर उस के घर जा पहुंचे.
रामचंद्र कांत्रज गांव में सुखसागर एशियन सोसायटी के सामने ओसवाल बिल्डर के एक खाली पड़े प्लौट के कोने में बने छोटे से मकान में रहता था. पुलिस के पहुंचने तक वहां काफी लोग जमा हो गए थे. पुलिस उन्हें हटा कर मकान के पास पहुंची तो 3 कमरों के उस मकान का मुख्य दरवाजा खुला था.
मकान के अंदर का दृश्य दिल दहला देने वाला था. आगे वाले कमरे में सोनबाई की सिर कटी लाश 4 टुकड़ों में बंटी पड़ी थी. उस के आसपास खून ही खून फैला था. वहां का दृश्य बड़ा डरावना लग रहा था. उस के सामने जो कमरा था, उस की कुंडी बाहर से बंद थी. पुलिस ने उसे खोला तो पता चला कि रामचंद्र ने बहू और उस के बच्चों को हत्या से पहले उन्हें कमरे में बंद कर दिया था.
मङ्क्षछद्र चव्हाण अभियुक्त रामचंद्र की बहू से घटना के बारे में पूछताछ कर ही रहे थे कि एडीशनल पुलिस कमिश्नर डा. सुधाकर पढारे और असिस्टैंट पुलिस कमिश्नर आत्माचरण शिंदे भी आ पहुंचे. इन के साथ प्रैस फोटोग्राफर और ङ्क्षफगरङ्क्षप्रट ब्यूरो की टीम भी थी. इन लोगों का काम निपट गया तो पुलिस ने औपचारिक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए पूना ससून डाक अस्पताल भिजवा दिया.
इस के बाद थाने लौट कर रामचंद्र से विस्तार से की गई पूछताछ में सोनबाई की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी.
63 वर्षीय रामचंद्र मूलरूप से कर्नाटक के जिला गुलबर्गा का रहने वाला था. उस के पिता शिव चव्हाण गांव के सीधेसादे गरीब किसान थे. गरीबी की ही वजह से रामचंद्र पढ़ नहीं पाया. बचपन से ले कर जवान होने तक उस ने पिता के साथ काम किया.
लगभग 40 साल पहले उस की शादी हुई तो पत्नी सोनबाई को ले कर वह रोजीरोटी की तलाश में पूना आ गया.
पूना शहर में कुछ दिनों तक वह इधरउधर छोटामोटा काम करता रहा, लेकिन जब उसे ओसवाल बिल्डर के यहां वाचमैनी की नौकरी मिल गई तो उस के जीवन में ठहरवा आ गया. बिल्डर की ओर से रहने के लिए उसे एक छोटा सा मकान भी मिल गया था.
उसी मकान में वह पत्नी के साथ रहने लगा. वहीं उस के 4 बच्चे, 2 बेटियां और 2 बेटे हुए. उस ने बच्चों को पढ़ायालिखाया और जैसेजैसे वे शादी लायक होते गए, वह उन की शादियां करता गया. अब तक उस की दोनों बेटियों और एक बेटे की शादी हो चुकी है.
बड़ी बेटी गुलबर्गा में ब्याही है तो छोटी मुंबई में. बड़े बेटे राजेश की भी शादी हो चुकी है. उस के 2 बच्चे भी हो चुके हैं.
राजेश पत्नी सुनीता और बच्चों के साथ पिता के साथ ही रहता था. उस से छोटे उमेश की अभी शादी नहीं हुई थी. दोनों भाइयों की बढिय़ा नौकरी थी. समय पंख लगा कर अपनी गति से बीतता रहा. रामचंद्र और सोनबाई उम्र के ढलान पर पहुंच चुके थे.
सोनबाई वैसे तो अपने सभी बच्चों से बहुत प्यार करती थी, लेकिन छोटी बेटी और दामाद से उसे कुछ ज्यादा ही लगाव था. न जाने क्यों वह छोटे दामाद को कुछ ज्यादा ही मानती थी. वह जब भी उस के यहां आता, वह उस की सेवा में लग जाती, उस का ध्यान सब बच्चों से ज्यादा रखती. उस के साथ अधिक से अधिक समय बिताना चाहती. उस से बातें भी खूब करती.
जबकि रामचंद्र को यह सब जरा भी पसंद नहीं था. उस ने इस के लिए सोनबाई को न जाने कितनी बार समझाया और मना किया, लेकिन बेटी और दामाद की ममता में वह कुछ इस तरह खोई थी कि मानी ही नहीं. वह बेटी और दामाद से फोन पर भी लंबीलंबी बातें करती थी.
कई बार समझाने और मना करने पर भी जब सोनबाई नहीं मानी तो रामचंद्र के मन में दामाद और पत्नी को ले कर शक होने लगा. उस के मन में तरहतरह के गलत विचार आने लगे. उसे पत्नी पर से भरोसा उठने लगा.
दिमाग में संदेह का जहर भरा तो उसे पत्नी से नफरत होने लगी. उसे लगता था कि उस की पत्नी सोनबाई और दामाद के बीच गलत संबंध हैं. जबकि सोनबाई और उस के दामाद के बीच वैसा कुछ भी नहीं था. दोनों का चरित्र साफ था. लेकिन अगर किसी को संदेह हो जाए तो उस का इलाज ही क्या है, इसी संदेह की वजह से सोनबाई और रामचंद्र में पतिपत्नी जैसा मधुर संबंध नहीं रह गया.
इस के बाद पतिपत्नी में लड़ाईझगड़ा और मारपीट आम बात हो गई. रामचंद्र के बच्चे और बहू उसे समझासमझा कर थक गए, लेकिन न उस का संदेह दूर हुआ और न लड़ाईझगड़ा बंद हुआ. उसे पत्नी से ऐसी नफरत हो गई कि वह पत्नी से लडऩे और उसे मारनेपीटने के बहाने खोजने लगा.
रामचंद्र की जब भी पत्नी से लड़ाई होती, उसे पीटते हुए उस का गला पकड़ कर कहता, ‘‘तू सचसच बता, तेरा दामाद के साथ क्या चल रहा है? तुझे बेटे की उम्र के दामाद से संबंध बनाते शरम नहीं आती.’’
पति के इस झूठे आरोप से सोनबाई का खून खौल उठता. जवाब में वह कहती, ‘‘बुढ़ापे में तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है. मुझे और मेरे बच्चों को देखो, मैं बूढ़ी हो गई हूं और वे जवान हो गए हैं. उन के बच्चे हो गए हैं. उन्हें मैं गोद में ले कर खिलाती हूं. मेरी यह उम्र इश्क करने की है. अगर इश्क ही करना होगा तो दामाद से ही करूंगी? अपनी ही बेटी के सुखी संसार में आग लगाऊंगी? तुम्हें तो लाजशरम रह नहीं गई है, मुझे भी इन बच्चों के सामने बेशरम बना दिया है. इस हालत में तो मेरी मौत हो जाए, यही मेरे लिए अच्छा है.’’
पत्नी की इन बातों का रामचंद्र पर कोई असर नहीं पड़ा. उस के दिमाग में संदेह का जो कीड़ा पैदा हो गया था, अब वह शांति से बैठ नहीं रहा था. आखिर एक दिन वह भी आ गया, जब उस के संदेह के उस कीड़े ने जहरीला नाग बन कर सोनबाई को इस तरह डसा कि वह हमेशाहमेशा के लिए इस नश्वर संसार से विदा हो गई. यह 9 अक्तूबर, 2015 की बात थी.
वह दिन भी रोज की ही तरह शुरू हुआ था. राजेश और उमेश खापी कर अपनीअपनी नौकरी पर चले गए थे. घर में सिर्फ राजेश की पत्नी सुनीता और दोनों बच्चे ही रह गए थे. घर आते ही रामचंद्र किसी बात को ले कर सोनबाई से उलझ पड़ा.
बहू सुनीता ने झगड़ा शांत कराने की कोशिश की, लेकिन रामचंद्र चुप नहीं हुआ. धीरेधीरे यह झगड़ा इतना बढ़ गया कि सोनबाई ने एक बार फिर कहा कि अगर मौत आ जाती तो इस झंझट से छुटकारा मिल जाता.
इतना कह कर झगड़ा खत्म करने की गरज से वह बाहर जा कर बरतन साफ करने लगी. तभी रामचंद्र ने कहा, ‘‘तू मरना चाहती है न तो मैं तुझे मार ही देता हूं.’’
यह कह कर रामचंद्र घर के अंदर गया और कोने में लकड़ी काटने वाली कुल्हाड़ी ले कर बाहर आ गया. बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर रही सुनीता ने जब रामचंद्र के हाथों में कुल्हाड़ी देखी तो बुरी तरह डर गई. किसी अनहोनी की आशंका से वह अपने पति राजेश को फोन करने लगी. वह पति को ससुर के तेवर के बारे में बता रही थी कि रामचंद्र ने उस के पास आ कर कहा, ‘‘तू बच्चों को ले कर अंदर कमरे में जा.’’
ससुर के गुस्से को सुनीता जानती थी, इसलिए उस की बातों का विरोध किए बगैर वह बच्चों को ले कर चुपचाप अपने कमरे में चली गई. उस के कमरे में जाते ही रामचंद्र ने बाहर से कुंडी लगा दी. इस के बाद वह सीधे पत्नी के पास पहुंचा.
सोनबाई बरतन साफ कर रही थी. रामचंद्र ने उस के पास आ कर कहा, ‘‘जब देखो, तब तुम मरने की बात करती रहती हो न, चलो आज तुम्हारी यह तमन्ना मैं पूरी ही कर देता हूं.’’
सोनबाई कुछ कह पाती, उस के पहले ही रामचंद्र ने कुल्हाड़ी से सोनबाई के सिर पर पूरी ताकत से वार कर दिया. सोनबाई जोर से चीखी और सिर पकड़ कर जमीन पर लोट गई. इस के बाद रामचंद्र उसे घसीट कर कमरे में ले आया और मानवता की सारी हदें पार कर के बेरहमी से उस के शरीर के 4 टुकड़े कर दिए. इस के बाद सोनबाई का कटा सिर और कुल्हाड़ी ले कर वह तालाब में फेंकने जा रहा था, तभी लोग उस के पीछे लग गए. आगे चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस मिल गई तो उस ने उसे रोक लिया. तब तक सूचना पा कर थाना पुलिस भी वहां पहुंच गई और उसे पकड़ लिया.
पूरी कहानी सामने आ गई तो मङ्क्षछद्र चव्हाण ने रामचंद्र के खिलाफ अपराध संख्या 350/2015 पर भादंवि की धारा 302, 201, 342 और मुंबई पुलिस एक्ट 37-स-135 के तहत मामला दर्ज कर के आगे की जांच असिस्टैंट इंसपेक्टर एस. शिंदे को सौंप दी.
एस. शिंदे ने रामचंद्र की दिमागी जांच मनोचिकित्सक से कराई कि उस का कहीं मानसिक संतुलन तो नहीं बिगड़ गया है. डाक्टर ने उसे स्वस्थ बताया तो उसे मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट श्री टी.एन. चव्हाण की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में पूना की यरवदा जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में बंद था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित