27 फरवरी, 2014. समय दोपहर के 3.30 बजे. एक ओर उद्यान में अवैध शिकारी और वन विभाग के पुलिसकर्मियों के बीच मुठभेड़ चल रही थी तो वहीं दूसरी ओर एक अन्य शिकारी दल बेरहमी से एक गैंडे की गोली मार कर हत्या कर देता है और उस के कीमती सींग निकाल कर फरार हो जाता है. मुठभेड़ की जगह से शिकारी गिरोह के 2 सदस्यों की लाशें पाई जाती हैं और भारी मात्रा में हथियार व गोलियां बरामद की जाती हैं. हैवानियत की ऐसी घटनाएं विश्व- विख्यात असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में आएदिन घटती हैं. अवैध शिकारी बड़े ही निर्दयी होते हैं. पहले वे घात लगा कर गैंडे को गोली मारते हैं, फिर कुल्हाड़ी से सींग काट लेते हैं. आखिरकार गैंडा दम तोड़ देता है. काजीरंगा समेत असम के तमाम राष्ट्रीय उद्यानों में अवैध शिकारियों के कहर से गैंडों के जीवन पर सवाल उठ रहा है कि आखिर वे जाएं तो जाएं कहां?

मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के चहेते वनमंत्री रकीबुल हुसैन के कार्यकाल के दौरान तकरीबन 200 से अधिक गैंडों की हत्या हो चुकी है. 2014 के फरवरी महीने में 8 गैंडों की हत्या की जा चुकी है, इस के अलावा 2013 में सूबे के उद्यानों से शिकारियों ने 40 गैंडों को मार कर सींग निकाल लिए हैं. बुढ़ापहाड़ वनांचली में अवैध शिकारियों ने 11 अन्य गैंडों की हत्या कर दी. एक के बाद एक गैंडों की हत्याएं की जा रही हैं और वन विभाग बेशर्मी से तमाशा देख रहा है. ऐसा लगता है, वन विभाग ने इन शिकारियों को गैंडों की हत्या करने व उन के सींग निकालने की छूट दे रखी है.

गैंडों की हत्या करने और उन के कीमती सींग निकालने की घटना को बयां करने से पहले 1 सींग वाले गैंडे के लिए विश्वविख्यात काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का यहां जिक्र करना जरूरी है. मध्य असम में बसे और 430 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में 1 सींग वाले गैंडे के अलावा हाथी, बाघ, भालू, चीते, भेडि़या, अजगर, लंगूर आदि सैकड़ों पशुपक्षियों का निवास है. यह पूर्वी भारत के अंतिम छोर का ऐसा उद्यान है जहां इंसान के रहने का नामोनिशान तक नहीं है. ब्रह्मपुत्र नदी के पश्चिमी किनारे पर घने पहाड़ों की तलहटी पर बसे काजीरंगा को 1908 में रिजर्व फौरेस्ट और 1950 में वाइल्ड लाइफ सैंचुरी घोषित किया गया. 1985 के दौरान यूनेस्को ने काजीरंगा को वर्ल्ड हैरिटेज साइट घोषित किया.

1 सींग वाले गैंडों को बचाना आज एक बड़ी समस्या बन कर उभरी है. काजीरंगा के अलावा मानस लाउखोवा और पवितरा समेत तमाम उद्यानों में गैंडे की हत्या बदस्तूर जारी है. 18वीं और 19वीं सदी में गैंडों की हत्या करने की घटनाएं जोरों से होनी शुरू हुई थीं और इसी वजह से इन की संख्या तेजी से घटने लगी. 19वीं सदी के समय सरकारी दस्तावेजों के अनुसार सेना के बड़े अधिकारियों ने 200 गैंडों को मार डाला था. घटना का परदाफाश तब हुआ जब गैंडों की जनगणना हुई. इन की संख्या मात्र 12 रह गई थी. गैंडे की हत्या सिर्फ इस के सींग के लिए की जाती है. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में 2012 की जनगणना के अनुसार, 2,505 गैंडों के स्थान पर 2,186 गैंडे ही पाए गए. 524 गैंडों की हत्या कर उन के सींग निकाल लिए गए. आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि पिछले 10 सालों के दौरान 115 गैंडों की हत्या की गई और उन के सींग निकाल लिए गए.

भूमिगत उग्रवादी भी शामिल

गैंडों की हत्या ज्यादातर रात के वक्त की जाती है. शिकारी हाथों में हथियार और सींग निकालने के लिए कुल्हाड़ी ले कर गैंडों के शिकार के लिए निकलते हैं. दूसरी ओर बरसात के दिनों में काजीरंगा उद्यान में बाढ़ की स्थिति होने के कारण गैंडे तथा अन्य जीवजंतुओं के जान बचाने के लिए किसी सुरक्षित स्थान की तलाश में उद्यान से बाहर निकलने के वक्त, शिकारी दल घात लगाए रहते हैं और मौका मिलते ही गोली चला देते हैं. शिकारियों के खिलाफ कभीकभार वनकर्मी अभियान चलाते हैं. अभियान के दौरान कई अवैध शिकारियों को गैंडे के सींग के साथ पकड़ा भी गया है.

गैंडे की हत्या करने की करतूत में असम के कुछ भूमिगत उग्रवादी संगठनों के शामिल होने की बातें भी सामने आई हैं. 2012 में आई भीषण बाढ़ से काजीरंगा में कम से कम 700 जीवजंतुओं की मौतें हुई थीं, वहीं कुछ हथियारबंद उग्रवादी संगठन शिकार की तलाश में घूम रहे थे कि काजीरंगा उद्यान के पुलिसकर्मियों ने लिंगदोह रंग्पी को गिरफ्त में ले लिया था. उस ने कोर्ट में मजिस्ट्रेट के सामने कुबूला कि वह कुकी नैशनल लिबरेशन फ्रंट का सदस्य है. और इस समय वह शांति समझौते वाले गुट का साथी है. उस का कहना था कि कुछ सदस्य शिकारियों के साथ मिल कर गैंडे की हत्या कर के उस के सींग निकाल लिया करते हैं. दूसरी ओर उल्फा आतंकवादी संगठन के कुछ कैडर के भी इस धंधे में शामिल होने की बात बताई जा रही है. वैसे तो शिकारियों पर नजर रखने के लिए काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में 8 जगहों पर इलैक्ट्रौनिक कैमरे लगे हैं, बावजूद इस के गैंडे का शिकार बदस्तूर जारी है. वन अधिकारियों के ढुलमुल रवैये के कारण शिकारियों को किसी का भय नहीं है.

शिकारियों द्वारा मारे गए गैंडों की सूची 1962 से फरवरी 2014 तक

वर्ष     काजीरंगा      मानस  उरांग   पवितरा लाउखोवा

1962  1     ×     ×     ×     ×

1963  1     ×     ×     ×     ×

1964  1     ×     ×     ×     ×

1965  18    ×     ×     ×     ×

1966  6     ×     ×     ×     ×

1967  12    ×     ×     ×     ×

1968  10    ×     ×     ×     ×

1969  08    ×     ×     ×     ×

1970  02    ×     ×     ×     ×

1971  08    ×     ×     ×     ×

1972  0     ×     ×     ×     ×

1973  03    ×     ×     ×     ×

1974  03    ×     ×     ×     ×

1975  05    ×     ×     ×     ×

1976  10    04    ×     ×     ×

1977  0     ×     ×     ×     ×

1978  05    1     ×     ×     ×

1979  02    05    ×     ×     ×

1980  11    03    03    03    03

1981  24    02    02    06    04

1982  25    05    ×     05    08

1983  37    03    04    41    07

1984  28    04    03    04    06

1985  44    1     08    02    ×

1986  45    1     03    ×     ×

1987  23    07    04    02    ×

1988  24    01    05    01    ×

1989  44    06    03    03    ×

1990  35    02    ×     02    ×

1991  23    03    01    01    ×

1992  49    11    02    03    ×

1993  40    22    01    04    ×

1994  14    ×     ×     04    ×

1995  27    ×     ×     02    ×

1996  26    ×     ×     05    ×

1997  12    ×     ×     03    ×

1998  08    ×     ×     04    ×

1999  04    ×     ×     06    ×

2000  04    ×     ×     02    ×

2001  08    ×     ×     ×     ×

2002  04    ×     ×     ×     ×

2003  03    ×     ×     ×     ×

2004  04    ×     ×     ×     ×

2005  07    ×     ×     ×     ×

2006  07    ×     ×     ×     ×

2007  21    ×     ×     ×     ×

2008  16    ×     ×     ×     ×

2009  15    ×     ×     ×     ×

2010  18    ×     ×     ×     ×

2011  09    ×     ×     ×     ×

2012  25    ×     ×     ×     ×

2013  20    ×     ×     ×     ×

2014  08    ×     ×     ×     ×

कीमती होता है गैंडे का सींग

गैंडे का सींग कीमती होता है. यही कारण है कि शिकारियों के दल काजीरंगा समेत असम के तमाम उद्यानों से गैंडों की हत्या कर के उन के सींगों को चोरीछिपे अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में पहुंचा दिया करते हैं, जहां इन के सींग 40 लाख से 90 लाख रुपए तक बेचे जाते हैं. गैंडे का चमड़ा तथा नाखून बहुत महंगे होते हैं. चमड़े से महंगे जैकेट, बैग, पर्स वगैरह तैयार किए जाते हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ऊंचे दामों में बेचे जाते हैं.

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