सौजन्य- सत्यकथा
भाईबहन अपनीअपनी जिद पर अड़े थे. आखिरकार भाई मनोहर ने अपनी छोटी बहन नीलम से कहा,
‘‘देख, मेरे कहने और न कहने से कुछ नहीं होता, बापू जो कहेंगे वही मानना होगा.’’
‘‘चल, यही ठीक रहेगा, आने दे बापू को. आने वाले ही होंगे. उन के सामने ही फैसला कर लेते हैं. लेकिन हां, उस वक्त मुकर मत जइयो,’’ नीलम प्यार से बोली.
‘‘मुकरना क्या है, तू मेरी बहन है, कोई गैर थोड़े है. मैं अपनी समस्या बताऊंगा और तुम अपनी बात कहना. बापू को जो सही लगेगा हमें कहेंगे,’’ भाई बोला.
‘‘...के बात हो गई, तुम दोनों भाईबहन फिर आपस में बहस करने लगे.’’ पिता सुभाष कश्यप की आवाज बैठक से सुनाई दी.
नीलम दौड़ कर बापू के लिए एक गिलास पानी ले कर चली गई. गिलास हाथ में पकड़ाती हुई बोली, ‘‘पानी और ठंडा लाऊं बापू या इतना ठंडा ठीक है?’’
बापू गिलास हाथ में लेते हुए बोले, ‘‘ना...ना, इतना ही ठंडा ठीक है. अब तू बता भाई से किस बात पर बहस कर रही थी?’’
‘‘जी..जी बापू कुछ नहीं,’’ नीलम हकलाती हुई बोली.
इतने में उस का भाई वहां पहुंच गया. बोला, ‘‘कुछ नहीं कैसे? बापू कह रही है कि 12वीं के बाद कालेज पढ़ने शहर जाएगी.’’
यह सुनते ही पानी पी रहे बापू ठिठक गए. कुछ समय खांसने के बाद बोले, ‘‘अरे भाई इस में गलत क्या है?’’
‘‘गलत तो कुछो ना है बापू, लेकिन रोजरोज उसे कालेज पहुंचावे और लावे कौन जाएगा? मैं तो उसे ले जाने से रहा,’’ भाई मनोहर कश्यप बोला.
‘‘अरे, लावेपहुंचावे की बात छोड़. मैं सब जानती हूं बेटी की पढ़ाई की जिद क्यों है? मनोहर भी जानता है. खुल कर नहीं बोल रहा.’’ कमरे से बाहर निकलती नीलम की मां कुसुम देवी बोली.
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