27 जुलाई, 2016 को पंजाब के जिला जालंधर की अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश डा. हरप्रीत कौर की अदालत में हत्या के एक मुकदमे का फैसला सुनाया जाना था. चूंकि इस मुकदमे में हत्या का दोषी मुख्य ग्रंथी को माना गया था, इसलिए उस से हमदर्दी रखने वाले पंजाब के तमाम गुरुद्वारों के ग्रंथी, सेवादार तो आए ही थे, आम लोग भी अदालत में जमा थे.

चूंकि यह चर्चित मामला था, इसलिए मीडिया वाले भी अदालत परिसर में जमा थे. जिस की हत्या हुई थी, उस की बहन रंजीत कौर और मां भी अन्य घर वालों के साथ फैसला सुनने अदालत आई थीं. पिछली तारीख पर दोनों पक्षों के वकीलों की बहस होने के बावजूद बचाव पक्ष के वकील के अनुरोध पर 11 बजे से साढ़े 12 बजे तक एक बार फिर बहस हुई.

जबकि जज डा. हरप्रीत कौर ने पिछली तारीख पर हुई बहस के आधार पर ही इस मुकदमे का फैसला सुरक्षित कर लिया था. फिर भी बचाव पक्ष के वकील के अनुरोध पर उन्होंने बहस का आदेश दे दिया था, जो करीब डेढ़ घंटे तक चली थी.

लंच के बाद ठीक सवा 2 बजे जज डा. हरप्रीत कौर ने अदालत में प्रवेश किया तो वहां उपस्थित लोगों ने खड़े हो कर उन का स्वागत किया. इस के बाद वह अपनी सीट पर बैठ गईं तो मुकदमे के फैसले की फाइल पेशकार ने उन के सामने रख दी. उन्होंने इस मुकदमे में क्या फैसला सुनाया, यह जानने से पहले आइए इस पूरे मामले के बारे में जान लें.

5 अप्रैल, 2014 को जालंधर के पटेल अस्पताल की स्टाफ नर्स रंजीत कौर ने अपनी मां परविंदर कौर के साथ जा कर थाना डिवीजन नंबर 8 के थानाप्रभारी विमलकांत से मिल कर शिकायत दर्ज कराई थी कि उस की 30 साल की विधवा बहन कमलप्रीत कौर कल यानी 4 अप्रैल, 2014 से अपने पृथ्वीनगर स्थित मकान नंबर एनए-28 से दोपहर 12 बजे से स्कूटर के साथ गायब है.

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