बिहार में नकली नोट, फर्जी स्टांप व फर्जी स्टांप पेपर्स के धंधे से जुड़े कई खिलाड़ी तेलगी को मात देते दिख रहे हैं. हालिया छापे में बरामद नकली नोट और करोड़ों के स्टांप  व स्टांप पेपर्स संकेत दे रहे हैं कि राज्य में गैरकानूनी धंधे का काला साम्राज्य खड़ा हो रहा है. पेश है बीरेंद्र बरियार की रिपोर्ट.
‘लगता है रंजीतवा ने नोट छापने का मशीन लगा लिया है? कौन काम करता है कि एतना रुपय्या कमा रहा है? गांव वालों पर अंधाधुंध पैसा लुटाता है और गांव में बड़का मकान कैसे बना रहा है?’ रंजीत के गांव वाले उस की शाहखर्ची देख मजाकमजाक में कहते रहते थे कि लगता है उस ने नोट छापने की मशीन लगा रखी है, पर यह मजाक तब सच साबित हो गया जब नकली नोट और स्टांप व स्टांप पेपर्स छापने व बेचने के आरोप में रंजीत को पुलिस ने दबोच लिया और उस की 2 प्रिंटिंग मशीनों का पता चला. उस ने सच में नोट छापने की मशीन लगा रखी थी.
पटना के न्यू बाइपास रोड से सटे खेमनीचक गांव के एक घर में लगाई गई पिं्रटिंग प्रैस में नकली स्टांप, स्टांप पेपर्स और भारतीय नोट के साथ विदेशी नोट छापने का काम चलता था. लगातार 24 घंटे तक चली छापेमारी में प्रैस समेत 100 करोड़ रुपए के नकली स्टांप, स्टांप पेपर्स, रुपए, डाक टिकट, पोस्टल और्डर, एनएससी आदि बरामद किए गए. इन में अमेरिका, इंगलैंड और अरब देशों की करीब 10 लाख रुपए की नकली करैंसी थी.
जाली स्टांप व स्टांप पेपर्स के धंधे का नया खिलाड़ी 40 साल का रंजीत नकली स्टांप व स्टांप पेपर्स के साथसाथ नकली नोट भी छापने लगा था. इतने पर भी उस का मन नहीं भरा तो वह अमेरिका, इंगलैंड, नेपाल और अरब देशों की करैंसी छापना चालू कर करोड़पति से अरबपति बनने की राह पर चल पड़ा.
इस धंधे में रंजीत नकली स्टांप पेपर्स का इंटरनैशनल धंधेबाज अब्दुल करीम तेलगी का भी उस्ताद निकला. मुंबई और कोलकाता को जालसाजी का मुख्य अड्डा बनाने वाले तेलगी ने देश की इकोनौमी को करीब 20 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाया था. कर्नाटक मूल के उस शख्स
ने देश में नकली स्टांप पेपर्स का ऐसा साम्राज्य खड़ा कर लिया था कि उस के चेलेचपाटे आज भी उस के काले धंधे के जाल को फैलाने में लग कर करोड़ोंअरबों रुपयों के वारेन्यारे कर रहे हैं.
बचपन के दिनों में ठेले पर सब्जी और टे्रनों में फल बेचने वाले तेलगी ने अपने शातिर दिमाग से नकली स्टांप पेपर्स का धंधा चालू किया और देखते ही देखते 20 हजार करोड़ रुपए का स्टांप पेपर्स घोटाला कर डाला था. उस का नैटवर्क देश के 12 राज्यों में फैला हुआ था. इन मामलों में उस पर कुल 47 मुकदमे चले जिन में से 12 महाराष्ट्र में ही थे. वर्ष 2011 में अदालत ने उसे 10 साल की कैद की सजा सुनाई थी पर जेल में ही एड्स की बीमारी होने से उस की मौत हो गई.
रंजीत के गांव वालों की मानें तो 5 साल पहले तक वह गांव में लफंगई करता फिरता था और शराब पी कर इधरउधर बेहोश पड़ा रहता था. 3-4 साल पहले वह अकसर पटना आनेजाने लगा था. कुछ समय बाद ही वह बड़ी और महंगी गाडि़यों में घूमने लगा. दिनभर गांव में रहता था, पर रात को किसी होटल में चला जाता. होटल में गांव के दोस्तों को खूब खिलातापिलाता था. कुछ दिन ऐशमौज करने के बाद गांव से चला जाता.
पटना के एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि खेमनीचक में छपते नकली स्टांप, स्टांप पेपर और नोटों के पीछे एक बड़ा गिरोह सक्रिय था. वहां से बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल व झारखंड में जुडिशियल और नौन जुडिशियल स्टांपों को भेजा जाता था.
इस इंटरस्टेट गिरोह का सरगना रंजीत कुमार है. रंजीत समेत 16 जालसाजों को पुलिस ने दबोचा. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के खजनी थाना के उसरी गांव के रहने वाले रंजीत ने पटना के हनुमाननगर महल्ले के अभय अपार्टमैंट के फ्लैट नंबर 204 में अपना अड्डा बना रखा था. वहीं से वह नकली स्टांप, स्टांप पेपर और नोट का काला धंधा चलाता था. इस के अलावा पत्रकार नगर के रघुहरि अपार्टमैंट के फ्लैट नंबर 504 को रंजीत ने नकली स्टांप, स्टांप पेपर्स और नोटों का गोदाम बना रखा था.
वर्ष 2011 में भी नकली स्टांप के एक मामले में पुलिस ने रंजीत को पटना के गर्दनीबाग महल्ला से गिरफ्तार किया था. उस समय भी उस के पास से करोड़ों रुपए के नकली स्टांप और रुपए बरामद किए गए थे. 9 महीने तक जेल में रहने के बाद उसे जमानत मिली थी. जेल से बाहर निकलते ही वह फिर से अपने पुराने धंधे में लग गया था. रंजीत के साथ पकड़ा गया अर्जुन सिंह भी इस धंधे का पुराना और मंजा हुआ खिलाड़ी है. इस मामले में वह कई दफे जेल जा चुका है. इस के अलावा पुलिस के हत्थे चढ़ा हेमकांत चौधरी उर्फ झाजी गिरोह का पुराना मैंबर है और नकली स्टांप पेपर बेचने के आरोप में 3 वर्षों तक जेल की हवा खा चुका है.
रंजीत के गिरोह के द्वारा हर महीने करीब 50 करोड़ रुपए के नकली नोट, स्टांप, स्टांप पेपर्स, डाक टिकट आदि की सप्लाई की जाती थी. इस से सरकारी राजस्व को 1 वर्ष में 600 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा था. स्टांप वैंडरों की मिलीभगत से नकली स्टांप, स्टांप पेपर्स का धंधा फलफूल रहा था. नकली स्टांप व स्टांप पेपर्स छापने वालों और बेचने वाले वैंडरों के बीच 50-50 फीसदी कमाई का हिसाब होता है.
गौरतलब है कि नकली स्टांप पेपर्स की लगातार मिल रही शिकायतों के मद्देनजर, पटना पुलिस ने ‘औपरेशन डीएससी’ यानी औपरेशन डुप्लीकेट स्टांप ऐंड करैंसी शुरू किया था. 29 दिनों की मशक्कत के बाद आखिरकार पुलिस को भारी कामयाबी मिली. छापामारी में 2 पिं्रटिंग प्रैस, 2 कंप्यूटर सैट, 3 स्कैनर, 3 पिं्रटर, 12 मोबाइल फोन, 5 से 20 हजार रुपए तक के नकली स्टांप, एनएससी और डाक टिकट, 50 व 10 रुपए के नकली नोटों का अंबार, 10 से 20 हजार रुपए तक के नौन जुडिशियल स्टांप पेपर, 5 से 500 रुपए तक के कोर्ट फी स्टांप, वैलफेयर स्टांप टिकट, दर्जनों नकली बैंक चैक बुक, प्रिंटिंग ब्लौक, पेपर कटिंग मशीन, पिं्रटिंग इंक, स्टांप और टिकट पिं्रट करने वाली डाई आदि पुलिस ने बरामद किए हैं.
ज्ञात हो कि पिछले 3 वर्षों के दौरान पटना में नकली स्टांप, स्टांप पेपर्स और नकली नोट का धंधा करने वालों का नैटवर्क बड़ी तेजी से फैला है.

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