भारत के मैट्रोपौलिटन शहर कोलकाता के एक पौश इलाके 3 रौबिंसन स्ट्रीट स्थित एक फ्लैट के बैडरूम में पलंग के पास बैंच पर कंबल से ढका हुआ एक नरकंकाल. कंकाल के सिरहाने तरहतरह के अलगअलग साइज के टैडीबीयर कतार में सजे हुए. पलंग के एक ओर 2 कुत्तों के कंकाल. कमरे में पिज्जा, पास्ता, सूखे फल (मेवा नहीं), केक, पेस्ट्री और चौकलेट समेत ढेर सारी खाने की सड़ीगली चीजों का अंबार. बाथरूम में एक अधजली लाश और इन सब के बीच एक जिंदा इंसान, एकदम स्वाभाविक जीवन जीता हुआ. ऐसा लगा जैसे यह हौलीवुड फिल्म निर्माता अलफ्रेड हिचकौक की किसी फिल्म का सैट है. हिचकौक की फिल्म ‘साइको’ का रीमेक. ‘साइको’ में एक होटल के मालिक नौरमैन के हाथों उस की अपनी मां की हत्या हो जाती है. अपराधबोध के कारण वह अपनी मरी हुई मां को कब्र से निकाल कर ले आता है. 10 साल उस ने अपनी मरी मां के साथ गुजारे. इसी क्रम में मां का व्यक्तित्व कब उस ने ओढ़ लिया, पता ही नहीं चला. फिल्म की कहानी अमेरिका के एक सीरियल किलर एडवर्ड के जीवन पर आधारित थी. वह मां जैसी दिखने वाली अधेड़ उम्र की औरतों की हत्या करता और फिर उन की लाश कब्र से निकाल लाता और उन के चमड़े से स्किन सूट बनाता था. उस का मानना था कि इस तरह से एक दिन उस की मां जी उठेगी.

कोलकाता की रौबिंसन स्ट्रीट में हत्या या आत्महत्या का अभी तक सुराग नहीं मिला है. पुलिस के हवाले से बताया गया कि पार्थो डे की सोच थी कि मरने के बाद भी आत्मा घर पर या इस के आसपास होती है. बुलाने पर आती है और फिर एक दिन जी उठती है. रौबिंसन स्ट्रीट के पते का एकमात्र जिंदा इंसान पार्थो डे, कंकाल में तबदील होती गई अपनी दीदी देबजानी डे के साथ ऐसी हालत में 6 महीने से रह रहा था. कल्पनालोक में विचरण करते हुए वह हर रोज दीदी की आत्मा को बुलाता और उस के साथ खाना खाया करता. मामले का खुलासा 10 जून को तब हुआ जब पार्थो डे के घर के बाथरूम से धुआं निकलता हुआ देख सिक्योरिटी गार्ड और स्थानीय लोगों ने दमकल व पुलिस को खबर दी. पिछले 6 महीने से बतौर सिक्योरिटी गार्ड यहां तैनात तपन राय का कहना है कि कहीं कुछ गड़बड़ी है, इस का अंदाज उसे था, लेकिन क्या, इस का पता नहीं चल पाया. वैसे भी घर पर 2 ही लोग थे, लेकिन खानानाश्ता हमेशा 3 लोगों का आता था. घर के जिस हिस्से में ये लोग रहते थे वहां प्रवेश की इजाजत नहीं थी. उन के फ्लैट के बाहर पहुंचने पर एक जोर का भभका जरूर लगता था. इस बारे में सिक्योरिटी गार्ड को यह सोच कर तसल्ली हो जाती कि चूंकि घर पर कोई औरत नहीं है, इसलिए गंदगी के कारण यह गंध आती है.

10 जून की सुबह मकान के मालिक अरविंद डे ने सिक्योरिटी गार्ड को बुला कर कहा था कि आज से पार्थो जो भी करना चाहे, करने देना. जहां जाना चाहे, जाने देना. इस के बाद शाम को फिर से बुला कर अरविंद डे ने उस से 2 बोतल कोल्डडिं्रक्स लाने को कहा. कोल्डड्रिंक्स ला कर देने के बाद सिक्योरिटी गार्ड ने उन्हें नाश्ते के लिए पूछा कि वे क्या खाएंगे. जवाब में उन्होंने कहा कि अब इस की जरूरत नहीं होगी. पार्थो की मां की मृत्यु से पहले सबकुछ ठीकठाक था. अरविंद डे एक ब्रिटिश कंपनी में बेंगलुरु में कार्यरत थे. 1989 में रिटायर होने के बाद पूरा परिवार कोलकाता लौट आया. यहां नियमित रूप से वे एक क्लब में गोल्फ खेला करते थे. आएदिन घर में पार्टियां होती थीं. 2005 में उन की पत्नी आरती डे की कैंसर से मौत के बाद सबकुछ बदल गया. समाज से परिवार कटता चला गया. पार्थो और बहन देबजानी दोनों ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. पार्थो अमेरिका में कार्यरत था. इंजीनियरिंग करने के बावजूद देबजानी कोलकाता के एक नामी स्कूल में म्यूजिक टीचर थी. मां के जाने के बाद दोनों ने नौकरी छोड़ दी और घर की चारदीवारी में बंद हो गए.

एडवैंचर स्थल बना

इन दिनों 3 रौबिंसन स्ट्रीट, कोलकाता का एक एडवैंचर स्थल बन गया है. इस के चारों ओर पसरे थ्रिल को लोग एंजौय कर रहे हैं. सुबह से ले कर शाम तक लोगों का तांता लगा रहता है. इस घर व इस घर के रहवासियों से जुड़ी रहस्यमयी खबर प्रकाशित होने के अगले दिन से लोगों का हुजूम लगने लगा. यहां आने वालों में तंत्रसाधक से ले कर मातापिता, बच्चों समेत सब हैं. ‘व्योमकेश बक्शी’ के शहर में वैसे भी शौकिया जासूसों की कमी नहीं है. आपस में बतियाते लोग यह कहते सुने गए – ‘हो सकता है पार्थो ने सब की हत्या की हो और खुद के पागल होने का ढोंग कर रहा हो. हो सकता है कंकाल देबजानी का नहीं, किसी और का हो.’

आगंतुक मोबाइल से फटाफट विभिन्न कोणों से तसवीरें लेते हैं. यहां तैनात पुलिस कौंस्टेबल का कहना है कि अब अंदर तो जाने नहीं दिया जा रहा है. फिर भी बाहर से घर की एक झलक देखने के लिए ही बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं. इतना ही नहीं, कुछ लोग तो परिवार समेत पूर्व कोलकाता के गोबरा स्थित पावलव मानसिक अस्पताल में भरती पार्थो डे की एक ‘लाइव’ झलक देखने को पहुंच जाते हैं. एक ने तो कहा कि मकान देख आए, सोचा पार्थो डे की भी एक झलक देख लें. गोया, छुट्टी के दिन वे चिडि़याघर आए हों. पुलिस की जांच में कई सनसनीखेज तथ्यों का खुलासा हुआ है. मसलन, घर के सदस्यों की आपसी बातचीत लगभग नहीं के बराबर थी. घर से बहुत सारी चिट्ठियां और चिट मिली हैं. इन से अनुमान लगाया गया है कि छोटीमोट बातें वे चिट के जरिए करते थे. जबकि ज्यादा व बड़ी बातें चिट्ठियों की मारफत. पिछले साल अगस्त में एक के बाद एक दोनों लैब्राडोर कुत्तों की मौत हुई थी. तब से देबजानी डिप्रैशन में चली गई और उस ने खानापीना छोड़ दिया. इस कारण पिछले साल दिसंबर में देबजानी की मौत हो गई. 6 महीने बाद इस साल मार्च में पिता को बेटी की मृत्यु का पता चल पाया.

मार्च 2015 के बाद से जून के दूसरे हफ्ते तक पिता और पुत्र 3 लाशों के साथ रह रहे थे. इस घर से पुलिस को हजारों की संख्या में बिखरी किताबें, 6 डैस्कटौप, 2 लैपटौप, ब्लू फिल्म की बहुत सारी सीडी, ढेर सारे पैनड्राइव और म्यूजिकल इंस्ट्रूमैंट मिले. पार्थो डे की लिखी बहुत सारी डायरियां भी मिली हैं. लेकिन उस की लिखावट और भाषा पुलिस के लिए एक अलग पहेली है. कहीं कोई आध्यात्मिक वाक्य है तो कहीं पारलौकिक. किसी भूतहा फिल्म की तरह घर के हरेक कमरे, यहां तक कि किचन और बाथरूम तक से एक महिला के गाने की धीमीधीमी आवाज गूंजती थी. जांच से पता चला कि 24×7 साउंड सिस्टम पर गाना बजता रहता था, जो ख्यातिप्राप्त ईसाई धर्मप्रचारक जौयसी मैयेर द्वारा गाया गया ईसाचरित है.

डायरी से चौंकाने वाले खुलासे

मामले की तह में पुलिस जितना गहरे जा रही है, मामला उतना ही उलझता जा रहा है. पुलिस को उम्मीद थी कि पार्थो की डायरी इस मामले को सुलझाने में मददगार होगी. लेकिन हो इस का उलटा रहा है. पार्थो की 2 डायरियां मिली हैं. लेकिन ये सिलसिलेवार तरीके से नहीं लिखी गई हैं. टुकड़ेटुकड़े में अलगअलग जगह, अलगअलग रंग के स्केच पैन से लिखी गई हैं, बहुत ही बेतरतीबी से. अपनी एक डायरी ‘माई स्टोरी, माई लाइफ’ में पार्थो लिखते हैं, ‘‘3 रौबिंसन स्ट्रीट कभी एक खूबसूरत बागीचा हुआ करता था. एक डायन की वजह से यह नरक में तबदील हो चुका है. मेरा परिवार बहुत ही अच्छा है. लेकिन उस डायन की वजह से यह अब किसी काम का नहीं रह गया है.’’ इसी तरह डायरी में एक अन्य जगह पार्थो डे ने एक वाक्य में लिखा है, ‘‘दीदी दिनोंदिन आकर्षक होती चली जा रही हैं.’’ एक जगह उन्होंने यह भी लिखा है, ‘‘मां मुझे यौन संबंध बनाने में अक्षम और नपुंसक समझती रही हैं. इसीलिए वे अकसर मेरे कमरे में कामवाली बाई को भेज दिया करती थीं, ताकि मैं उस के साथ यौन संबंध बना सकूं.’’

फिर एक जगह लिखा है, ‘‘मां दीदी से ईर्ष्या करती हैं. ….दीघा में एक दिन मां दीदी को बाथरूम में नंगा करती हैं….’’ इस के आगे कुछ स्पष्ट नहीं है. लेकिन इतना साफ है कि पार्थो ने दीघा की इस घटना को चोरीछिपे देखा है.

एक चिट्ठी में पार्थो लिखते हैं कि ‘‘…क्या मैं ने ऐसी जिंदगी की कामना की थी? इस तरह जीने के कोई माने नहीं हैं.’’ एक दूसरी चिट्ठी में एक अन्य लिखावट में लिखा गया है, ‘‘भगवान पर भरोसा रखो. सब ठीक हो जाएगा.’’ पुलिस का मानना है कि यह चिट्ठी हो सकता है देबजानी की हो क्योंकि वह धार्मिक और आध्यात्मिक प्रकृति की थी. डायरी में एक और जगह पार्थो ने लिखा है, ‘‘मैं अपनी दीदी को बहुत प्यार करता हूं. वह भी मुझे बहुत मानती है. मेरे बाबा मुझे बहुत प्यार करते हैं. और हम लोग अपने कुत्तों से बेइंतहा प्यार करते हैं. लेकिन इस डायन की वजह से ही अब हम लोग एक नरक में वास कर रहे हैं. इसी डायन ने मेरी मां की हत्या कर दी.’’

डायन शब्द का जिक्र पार्थो डे ने अपनी दादी के लिए किया है. दरअसल, पार्थो डे की मां आरती डे की मृत्यु स्तन कैंसर की वजह से 2005 में हुई थी और इस के ठीक 2 साल बाद यानी 2007 में उस की दादी का देहांत हुआ. लेकिन आरती देवी की मौत के बाद पूरे परिवार ने सामाजिक रूप से अपनेआप को अलगथलग कर लिया. रिश्तेदारी और आसपड़ोस से इन का मिलनाजुलना भी बंद हो गया था. कुछ समय पहले अरविंद डे का अपने भाई अरुण डे से बातचीत, मिलनाजुलना शुरू हुआ था लेकिन इस की वजह पारिवारिक संपत्ति थी. समाजशास्त्री अभिजीत मित्र का कहना है कि डायरी का जितना भी अंश प्रकाश में आया है, उस से लगता है कि भाईबहन और मांबेटे के बीच हो सकता है यौन संबंध हों. उन का यह भी कहना है कि अरविंद डे ने आग लगा कर आत्महत्या की है, इस पर भी एक शक की गुंजाइश है. हो सकता 3 रौबिंसन स्ट्रीट में जो कुछ भी घटा हो वह हत्याओं की एक सीरीज हो. और इन तमाम घटनाओं को इल्यूजन और डिसइल्यूजन के तहत मानसिक मामला ठहराए जाने की पार्थो द्वारा कोशिश की जा रही हो.

गौरतलब है कि पहले ही दिन से पार्थो मदर हाउस में कुछ ‘स्वीकार’ करने की बात कह चुका है. साथ में यह भी कहा, ‘‘मैं ने कुछ ऐसा किया है जो हो सकता है कानून की नजर में क्राइम हो, इसीलिए मुझे मदर हाउस में स्वीकार करना है.’’ समाजशास्त्री अभिजीत मित्र और पावलव मानसिक अस्पताल के डाक्टरों का मानना है कि पार्थो डे में अपराधी मानसिकता है जिसे वह छिपाने की कोशिश कर रहा है. इन का मानना है कि वह अपने भीतर प्रेम की भावना को संभाल पाने में अक्षम है. इसीलिए एक के बाद एक हत्याओं के सिलसिले को उस ने अंजाम दिया हो. बंगला जासूसी कथा साहित्य के प्रख्यात लेखक शीर्षंदु मुखोपाध्याय को भी हत्या की साजिश नजर आ रही है. माना जा रहा है कि पिता की भी आग लगा कर हत्या की गई है. हालांकि बाथरूम में कैरोसिन तेल की एक बोतल पाई गई है और बाथरूम का दरवाजा दमकल विभाग के अधिकारियों ने तोड़ा था. फिर भी हत्या का शक जाहिर किया जा रहा है. पार्थो डे चूंकि इंजीनियर है, हो सकता है इस में उस की किसी तरह की करतूत हो. हालांकि पिता अरविंद डे का एक सुसाइड नोट मिला है, लेकिन अभी लिखावट की वैज्ञानिक जांच बाकी है. इस में उन्होंने लिखा था, ‘‘मैं अपनी मरजी से मौत को गले लगा कर इस दुनिया से विदा ले रहा हूं. मेरी मौत के लिए कोई दूसरा जिम्मेदार नहीं है. पार्थो, तुम अच्छे से रहना. बहुतबहुत प्यार. बाबा.’’ पार्थो अपने पिता का ‘लास्ट नोट’ देखने को बेचैन है.

बहरहाल, 3 रौबिंसन स्ट्रीट के एकमात्र जीवित बाशिंदे पार्थो डे को गिरफ्तारी के बाद पावलव मानसिक अस्पताल में रखा गया. बताया जाता है कि मानसिक तौर पर बीमारों के साथ पार्थो कतई रहने को तैयार नहीं है. एक दिन पावलव मानसिक अस्पताल के पिछले गेट, जहां मानसिक मरीज के लिए शौच व नहाने के लिए बाथरूम हैं, नहाने से पहले काफी देर चहलकदमी करने के बाद गेट के सुराख से झांक कर बाहर खड़े पत्रकारों से पार्थो डे ने कहा कि गैरकानूनी रूप से उसे यहां बंद कर के रखा गया है. साथ में यह भी कि उस के नाम बहुत सारी संपत्ति है, जिसे वह ‘मदर हाउस’ को दान करना चाहता है. पत्रकारों से बात करते हुए उस ने बताया कि दीदी (देबजानी) की मृत्यु कठिन योग साधना के दौरान हुई है. दीदी स्वभाव से बहुत ही धार्मिक प्रकृति की थीं. उन की योग साधना में वह बाधा नहीं देना चाहता था, इसीलिए उपवास के लिए उस ने कभी रोका नहीं. फिलहाल जांच जारी है. लेकिन इतना तय है कि इस वारदात में सनसनीखेज व रोंगटे खड़े कर देने वाले जासूसी उपन्यास व किसी थ्रिल फिल्म का बहुत सारा मसाला है, वास्तविक खुलासा होना अभी बाकी है.

और भी हैं मिसालें

कोलकाता का यह कोई पहला मामला नहीं है. 2014 में अलीपुरदुआर में लंबे समय से बीमार चल रही शिखा राय की मृत्यु के बाद 20 दिनों तक उन के बच्चे इसी उम्मीद में कि वे ठीक हो जाएंगी, मां को एक वैद्य की दवा पिलाते रहे. इसी तरह दिल्ली के साकेत में भी रौबिंसन स्ट्रीट जैसी घटना घट चुकी है. 2010 में साकेत में शालिनी गुप्ता नाम की एक लड़की अपनी मां की लाश के साथ कई महीनों से रह रही थी. 2008 में वियतनाम में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी के देहावशेष को एक बहुत बड़ी सी गुडि़या के भीतर ठूंस कर बिस्तर पर लिटा रखा था. इसी बिस्तर पर वह हर रोज मृत पत्नी के देहावशेष के साथ सोया करता था. 2014 में न्यूयार्क के ब्रुकलिन में एक लड़की भी अपनी मृत मां के साथ 3 साल से रह रही थी. वह हर रोज मां को डाइनिंग टेबल पर भी बिठाती. खाना खिला कर बिस्तर में लिटा देती और फिर खुद भी उन के पास सो जाती थी.

ऐसा ही मामला कोलकाता के मालदा में भी सामने आया है. एक मां पर अपनी 4 वर्षीय बच्ची के माथे का मांस खाने का आरोप लगा है. पुलिस के मुताबिक, महिला का देवर जब अपनी भाभी से मिलने गया तो वह वहां के हालात देख कर सहम गया. उस की भाभी प्रमिला मंडल अपनी बेटी का मांस ब्लेड से काट कर खा रही थी. वर्ष 2007 में दिल्ली पुलिस ने पाया कि कालकाजी इलाके में 2 बहनें अपनी सब से छोटी बहन की लाश के साथ रह रही थीं. वे मानसिक रूप से विक्षिप्त थीं.

क्या है सच

रौबिंसन स्ट्रीट की घटना की जांच में पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में पार्थो डे ने बताया कि पिछले साल अगस्त महीने में अरविंद डे और उन के भाई अरुण डे के बीच लंबे समय तक मनमुटाव रहने के बाद सुलह हो गई थी. इस सुलह को पार्थो और देबजानी स्वीकार नहीं कर पाए थे. इस को ले कर 3 सदस्यीय परिवार में दो फाड़ हो गया था. पिता अपने अलग कमरे में सिमट गए और भाईबहन अलग. जांच से पता चला कि इन के बीच आपसी संवाद खत्म हो गया था. इस दौरान एक दिन देबजानी डे का एक कुत्ता टेरी मर गया. अगले कुछ दिनों के बाद दूसरा कुत्ता रिकी भी मर गया. ये कुत्ते देबजानी के लिए उस के बच्चों के समान थे. इसीलिए, वह मरे कुत्तों को अपने से अलग नहीं करना चाहती थी. लेकिन पिता अरविंद डे ने इस का विरोध किया. इस से परिवार में खाई बढ़ती चली गई. उधर, देबजानी धीरेधीरे अवसादग्रस्त होती चली गई. उस ने जोगदा मठ से दीक्षा ली हुई थी. गौरतलब है कि दक्षिणेश्वर स्थित जोगदा मठ सत्संग सोसाइटी हिंदूईसाई मत के परस्पर मिलन की बात करती है. देबजानी ने योगक्रिया के नाम पर अन्नजल का त्याग कर दिया.

अगस्त 2014 से ले कर 6 दिसंबर, 2014 तक क्रियायोग के तहत उपवास के बाद देबजानी ने बिस्तर पकड़ लिया. पार्थो ने पुलिस को बताया कि 24 दिसंबर तक उस के आवाज देने पर वह रिसपौंस दिया करती थी. लेकिन उस के बाद अगले 5 दिनों में उस में किसी तरह की हलचल जब नहीं दिखाई पड़ी, तब वह समझ गया कि उस की दीदी नहीं रहीं. पिता तक को उस ने दीदी के मरने की खबर नहीं दी. पार्थो सिक्योरिटी गार्ड से कभीकभार कुछ सूखा खाना मंगवा लिया करता था. उस ने बताया कि जनवरी 2015 में उस के पास नकद रुपए खत्म हो गए. तब वह धीरेधीरे पिता अरविंद डे से बात करने लगा. लेकिन दीदी की मौत की खबर तब भी उस ने पिता को नहीं दी. इस साल 13 मार्च को देबजानी की मौत का पता अरविंद डे को चल गया. अंतिम संस्कार न कर के लाश को घर पर रखे रहने की बात जान कर अरविंद डे और पार्थो के बीच बहुत कहासुनी हुई पर नतीजा कुछ नहीं निकला.

तहकीकात के बाद पुलिस के हाथों लगे तथ्यों से अनुमान लगाया जा रहा है कि एक तरफ मौत के बाद बेटी की लाश को घर पर रखे रहने की बेटे की जिद थी तो दूसरी तरफ ऐशोआराम के कायल, बढि़या शराब पीने के शौकीन और बातबात में पार्टी देने जैसे उन के रईसी अंदाज के कारण अरविंद की माली हालत बिगड़ती चली गई. बताया जाता है कि फरवरी में कोलकाता की एक प्रख्यात ज्वैलरी की दुकान में उन्होंने लगभग 6 लाख रुपए के जेवर बेचे थे. वे इस पारिवारिक मकान को भी किसी प्रोमोटर को बेचना चाहते थे. पर इस के लिए भाई और बेटे को नहीं मना पाए. पुलिस का अनुमान है कि इन्हीं कारणों से अवसादग्रस्त हो कर अरविंद डे ने आत्महत्या की. जहां तक पार्थो डे का सवाल है, तो अब उस का मानसिक इलाज भवानीपुर स्थित इंस्टिट्यूट औफ साइकिएट्री में चल रहा है.

अंधविश्वास के साए में

कोलकाता के रौबिंसन स्ट्रीट कांड में सिर्फ साइको फैक्टर ही नहीं, बल्कि अंधविश्वास का मकड़जाल भी पसरा दिखता है. पुलिस को घर से मिले म्यूजिक सिस्टम, सीडी, दस्तावेज, धार्मिक ग्रंथ व अन्य सामान पार्थो और उस के पूरे परिवार के अंधविश्वास में फं से होने की ओर इशारा करते हैं. मिले सुराग बताते हैं कि परिवार अंधविश्वासी था. फ्लैट के विभिन्न कमरे व ड्राइंगरूम में फै ली तथाकथित धार्मिक गुरुओं की तसवीरें और कंकाल के पास रखी गुरु की फोटो, म्यूजिक सिस्टम में बजते डरावने मंत्र, बहन व कुत्तों की आत्मा को बुला कर पार्थो डे का उन्हें खाना देना, उन से देर तक बात करना साफ जाहिर करता है कि पूरा परिवार अंधविश्वास के गहरे साए में था. खुद पार्थो डे ने अपनी डायरी में इस बात का जिक्र किया है कि उस की अपनी बहन 2013 में कुछ गुरुओं के संपर्क में आ गई और उन के कहे मुताबिक चलती थी.

संपत्ति का पेंच तो नहीं?

इस प्रकरण में हो रही जांच से इस बात के संकेत भी मिल रहे हैं कि कहीं संपत्ति विवाद के चलते तो हत्याएं नहीं हुई हैं? ऐसा अंदाजा इसलिए भी लगाया जा रहा है क्योंकि इस पौश इलाके में डे परिवार की करोड़ों की संपत्ति को ले कर विवाद चल रहा था. पुलिस जांच में यह तथ्य भी उजागर हुए हैं कि पार्थो के पिता अरविंद डे का अपने भाई अरुण डे के साथ इस चारमंजिला मकान को ले कर विवाद चल रहा था. इतना ही नहीं, मामला अदालत तक पहुंचा था. उस वक्त अदालत ने फैसला अरविंद के हक में सुनाते हुए उन्हें मकान से मिलने वाले किराए की राशि रखने का अधिकार दिया था. पता चला है कि डे परिवार को सिर्फ  किराए व अन्य स्रोत से महीने में करीब 2 लाख रुपए मिलते थे, जबकि परिवार महीने में करीब 40 हजार रुपए ही खर्च करता था. इस के अलावा, परिवार में संपत्ति को बेचने के फैसले पर एकमत न होने की कलह होती थी.

असंवेदनशीलता की हद

कोलकाता के 3 रौबिंसन स्ट्रीट में स्थित ‘हौरर हाउस’ के मानसिक रूप से बीमार पार्थो डे में लोगों की दिलचस्पी इस कदर बढ़ रही है कि वे न केवल घर की तसवीरें और सैल्फी लेने के लिए मोबाइल फोन कैमरे के साथ वहां पहुंच रहे हैं, और सोशल मीडिया पर तसवीरों को पोस्ट कर रहे हैं बल्कि कोलकाता के मंजरी ओपेरा ग्रुप को तो इस घर से अपने नए नाटक का विषय भी मिल गया है और वह जल्द ही इस भयावह मामले को अपने प्रोडक्शन का हिस्सा बनाने जा रहा है. हैरानी की बात है पार्थो डे जिसे डाक्टरों ने भी मानसिक रूप से विक्षिप्त साबित किया है और जिन का इलाज किया जाना चाहिए वह पब्लिक डिस्प्ले का माध्यम बन गया है. यह समाज की उस सोच को दर्शाता है जिस में लोग मानवीय त्रासदी में भी कूल सैल्फी लेने का अवसर ढूंढ़ रहे हैं. एक ऐसा पुरुष जो मानसिक रूप से विक्षिप्त है, उस का तमाशा बनाया जा रहा है और ऐसा लग रहा है उस की प्राइवेसी सरेआम नीलाम हो रही है. पार्थो डे के पूर्व सहपाठी ने टैलीग्राफ  अखबार से भी कहा है कि इस में पार्थो का कोई दोष नहीं है, वह मानसिक रूप से विक्षिप्त है, पर ऐसा दर्शाया जा रहा है जैसे सारा दोष उसी का है.

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