मैं, मेरा बेटा तथा भाभी गांधीधाम, गुजरात से दिल्ली जा रहे थे. हमारी सीटें अहमदाबाद से दिल्ली जाने वाली साबरमती ऐक्सप्रैस में रिजर्व थीं. हम गांधीधाम से अहमदाबाद के लिए एक लोकल ट्रेन से चले. रास्ते में ट्रेन एक जगह रुक गई. हमारी ट्रेन का टाइम हो गया था और लोकल ट्रेन आगे जा ही नहीं रही थी. हम लोग लोकल ट्रेन से उतर गए. एक आटो के पैसेंजर से आग्रह कर उस में सवार हो कर अहमदाबाद स्टेशन पहुंचे. वहां पता चला कि साबरमती ऐक्सप्रैस चली गई. तभी आश्रम ऐक्सप्रैस आई, उसी में सवार हो गए.

रिजर्वेशन इस ट्रेन का नहीं था, सो खड़े रहे. इतने में ट्रेन में एक फुटबाल टीम हिपहिप हुर्रे करती हुई चढ़ी. टीम के सदस्यों ने हमें खड़ा देखा कि महिलाएं खड़ी हुई हैं, उन्होंने अपनी 2 बर्थ हमें दे दीं. हम ने उन का बहुत शुक्रिया अदा किया तथा जाना कि खेलभावना उन के जीवन में भी है.

चंद्रिका जागानी, बर्दवान (प.बं.)

*

मैं और मेरी पत्नी ट्रेन से भोपाल से दिल्ली जाने के लिए रात 9 बजे स्टेशन पहुंचे. वहां मालूम हुआ कि हमारा सैकंड एसी वेटिंग नंबर 1 और 2 कन्फर्म नहीं हुआ. हम बहुत परेशान हो गए. हमारा दिल्ली जाना बहुत जरूरी था. हम दोनों सीनियर सिटीजन ने ट्रेन कंडक्टर से निवेदन किया. उस ने कहा कि सैकंड एसी में तो नहीं हो पाएगा, आप थर्ड एसी के कोटा नंबर एबी वन में 7 नंबर बर्थ पर बैठ जाएं. मैं देखता हूं, क्या हो सकता है.

ट्रेन चलने के आधा घंटे बाद कंडक्टर आया. उस ने बताया कि पोजीशन बहुत टाइट है और कोई भी सीट खाली नहीं है. इस बर्थ की सवारी भी विदिशा स्टेशन से आ जाएगी. तभी एक महिला, जो सामने बैठी थी, हमारे पास आई. पूछने पर हम ने अपनी समस्या बताई. उस ने कहा कि आप 2 मिनट रुकें. वह जल्द ही वापस आई और उस ने कहा कि आप बर्थ नंबर 9 और 10 ले लें. हम ने उन का बहुत शुक्रिया अदा किया और सो गए. सुबह जब हमारी नींद खुली तो मालूम पड़ा कि वह महिला एक मानसिक विकलांग संस्था की संचालिका है. और वह ऐसे 40 बच्चों का टूर ले कर दिल्ली जा रही थी.

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