मैं पढ़ने में हमेशा अच्छी रही हूं. पेंटिंग और डिबेट में भी मैं ने हमेशा पुरस्कार जीते हैं. 8वीं क्लास में प्रथम आने के बाद मेरा मन पढ़ाई में कम खेलकूद व पेंटिंग में ज्यादा लगने लगा था. नतीजा यह हुआ कि मैं क्लास टैस्ट में पिछड़ने लगी थी और अर्द्धवार्षिक परीक्षा में मेरा प्रदर्शन बहुत खराब रहा.

तब मेरे पापा ने मुझे अपने पास बुला कर खराब प्रदर्शन की वजह पूछी. मेरे द्वारा संतोषजनक जवाब न मिलने पर पापा ने मुझ से मेरे दिन का शैड्यूल मांगा व उसे चैक किया. मेरे शैड्यूल में खेलने के घंटे पढ़ाई के घंटे से डबल थे.

यह देख पापा बहुत नाराज हुए. फिर उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, पढ़ाई खुद एक खेल है. इसे खेल की तरह समझो. तुम्हें यह किसी भी खेल से ज्यादा मजेदार लगेगी. क्योंकि इस से तुम्हारा ज्ञान तो बढ़ेगा ही साथ ही स्कूल, घर और समाज में प्रतिष्ठा भी मिलेगी. यही पढ़ाई आगे चल कर तुम्हारे सुनहरे भविष्य का निर्माण भी करेगी.’’

पापा की यह सीख मेरे दिल को छू गई. इस के बाद मैं दिल लगा कर पढ़ने लगी. आज मैं 2 विषयों में एम ए कर चुकी हूं. यह सबकुछ मेरे पापा की वजह से ही हुआ है.

अमृता पांडेय, रोहिणी (दिल्ली)

 

मेरे बचपन का ज्यादातर वक्त पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के कसबा मानिकतल्ला बाजार में गुजरा है. छोटा पुत्र होने के कारण मैं अपनी मां का बहुत दुलारा था. मुझे चौकलेट बहुत प्रिय थी. उस समय मेरी उम्र लगभग 10 वर्ष की रही होगी. मैं श्रीरामपुर के एक स्कूल में 5वीं कक्षा का विद्यार्थी था.

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