बात उस समय की है जब मेरे पिताजी को लकवा मार गया और उसी हालत में उन की पैर की हड्डी टूट गई. चूंकि मैं शहर में नया आया था, इसलिए किसी से जानपहचान ठीक से नहीं हुई थी. बहुत मशक्कत के बाद उन का औपरेशन संभव हो पाया. इसी दौरान डाक्टर के पैनल में सभी से हमारी मित्रता हो गई. इसी बीच एक डाक्टर ने सलाह दी कि बाबूजी की हड्डी को रिप्लेस करने के लिए रौड लगाई जाएगी और रौड लेने के लिए विशेष दुकान का पता दिया. चूंकि हम बहुत घबराए हुए थे, डाक्टर जैसे कह रहे थे, करते जा रहे थे. रौड लेने दुकान पर गए तो कीमत सुन होश उड़ गए. रौड लगाने की राय देने वाले डाक्टर को खूब कोसा.खैर, बाबूजी का सफलतापूर्वक औपरेशन हो गया. 10-12 दिनों के बाद बाबूजी डिस्चार्ज हो कर घर आ गए. लेकिन अचानक 3 दिन बाद रात 2 बजे पिताजी की तबीयत बिगड़ गई. कुछ सूझ नहीं रहा था, मां को उन्हीं डाक्टर का खयाल आया.

मेरे दिमाग में उस डाक्टर की छवि विपरीत थी लेकिन डूबते को तिनके का सहारा. मैं ने डाक्टर से फोन पर संपर्क किया. आश्चर्य की बात उन डाक्टर ने रात 2 बजे मुझ से बात की और तुरंत अपनी कार ले कर हमारे घर आ पहुंचे और बाबूजी को अस्पताल ले गए. अस्पताल में पूरी औपचारिकता तथा कई सारे टैस्ट करवाने में न केवल हमारी मदद की बल्कि एक परिवार के सदस्य की भांति सुबह तक हमारे साथ रहे और हमें मानसिक सहारा देते रहे.उस दिन उन के प्रति बहुत ही श्रद्धा भाव आ गया. सचमुच दुनिया में अभी भी मानवता जीवित है.

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