मेरे परिचित के यहां शादी थी. हम लोग निमंत्रणपत्र पर अंकित निश्चित तारीख न देख पाए, कार्ड काफी पहले मिला था. कार्ड घर में ही कहीं इधरउधर रख दिया था. सिर्फ रविवार दिन याद था. यह नहीं याद आ पा रहा था कि शादी 3 की या 13 की है. हम लोग 3 तारीख को खूब तैयारी के साथ घर से वहां जाने के लिए निकले. उन के घर पर एकदम सन्नाटा था. शाम का वक्त था. कोई सजावटरोशनी भी नहीं थी. हमें संदेह होने लगा. यह पछतावा भी हो रहा था कि काश, फोन से निश्चित तारीख पूछ लेनी चाहिए थी. हम सब धीरे से वापस होने लगे तो उस घर के एक बुजुर्ग व्यक्ति वहीं पास में मिल गए. हम लोग तो सकपका गए. उन के पूछने पर सचाई बताई तो वे बहुत हंसे और वापस अपने घर ले कर आए. उन के परिवार के लोग भी यह सब बात जान कर हंसने लगे और सही तारीख बताई.
मायारानी श्रीवास्तव
*
मैं और मेरा भाई होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रहे थे. मां और पिता घर पर थे. हमारे पड़ोस में एक परिवार रहने आया. परिवार में पतिपत्नी और 2 बच्चियां थीं. बड़ी बच्ची 5 साल की थी. उस बच्ची को ऊटपटांग सवाल पूछने की आदत थी. एक दिन वह मेरी मां के साथ रसोई में बातें कर रही थी. उस ने हौरलिक्स का डब्बा देखा और बोली, ‘‘यह कौन खाता है?’’ उस के सवाल पर मां को हंसी आई और उन्होंने कहा, ‘‘मेरे बच्चे खाते हैं.’’
मां के जवाब पर वह बहुत हैरान हुई और अजीब सा चेहरा बना कर बोली, ‘‘आप के बच्चे कहां हैं, उन्हें अपने पास क्यों नहीं बुलातीं, उन को प्यार कौन करता होगा?’’ उस ने जिस मासूमियत से यह बात कही और जो भाव उस के चेहरे पर थे, वह देख कर मेरी मां अपनी हंसी रोक न पाईं.
नीतू पाठक
*
मैं ने अपनी भाभी को एक बार मजाक मेें कह दिया कि तुम भाई से बहुत लड़ती हो. वे इस बात का बुरा मान गईं. उन को मनाने के उद्देश्य से मैं ने उन के विवाह की वर्षगांठ पर चंद पंक्तियां वाट्सऐप कर दीं- ‘‘लड़तेझगड़ते कट गए 28 साल आज भी मेरी भाभी के टमाटर जैसे लाल हैं गाल.’’
अपनी प्रशंसा पढ़ वे बहुत खुश हुईं और उन पंक्तियों को उन्होंने अपने सभी मित्रों को फौरवर्ड कर दिया.
डा. अनिता राठौर ‘मंजरी’