मेरी बेटी मीनू 12वीं कक्षा की वार्षिक परीक्षा की तैयारी कर रही थी. एक दिन वह गणित का एक प्रश्न हल कर रही थी, कई बार प्रयास करने पर भी वह हल नहीं हो पा रहा था. मेरी बेटी और मेरे पति दोनों ही गणित में काफी होशियार हैं. सो उस ने शाम को अपने पापा से कहा कि उस से एक प्रश्न हल नहीं हो पा रहा है. इन्होंने बड़े आत्मविश्वास से कहा, ‘‘अरे, इतना आसान प्रश्न तुम से हल नहीं हो रहा है. मैं इस को अभी चुटकी में हल कर देता हूं.’’ इन्होंने सवाल हल करना शुरू किया. काफी देर बाद हल निकल आया, मीनू बोेली, ‘‘पापा, प्रश्न हल तो हो गया पर चुटकी लंबी हो गई.’’

अरुणा रस्तोगी, मोतियाखान (न.दि.)

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बात उस समय की है जब मैं कंप्यूटर ओ लेवल का फौर्म भर रही थी. फौर्म मेरी दीदी ने भर दिया. बस, साइन करने ही बाकी थे. हम चालान बनवाने बैंक गए. समय लगने के कारण हम भैया के घर चले गए. वहीं पर मैं ने दीदी के बताए अनुसार फौर्म देखा और बधाई दे कर हाथ मिलाने लगे. मैं और दीदी हतप्रभ हो कर उन्हें देखने लगे. हम ने पूछा, ‘‘बधाई किस बात की?’’

तो भैया तपाक से बोले, ‘‘तुम इस संस्थान की निदेशक बन गई हो.’’ हमारे कुछ भी समझ में नहीं आया पर जब फौर्म देखा तो हम भी हंसतेहंसते लोटपोट हो गए. दरअसल, दीदी ने गलती से एप्लीकैंट की जगह निदेशक की जगह पर हस्ताक्षर कर दिए थे.

नेहा प्रधान, कोटा (राज.)

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एक दिन मैं अपने कपड़े सिलवाने के लिए दर्जी के पास गई. अभी मैं उसे समझा ही रही थी कि एक महिला हड़बड़ी में आई और उसे डांटने लगी. दिखने में वह नौर्थईस्ट की लग रही थी. बिना सोचेसमझे वह चिल्लाए जा रही थी, ‘‘अनवर, मेरी सलवार खोल दी.’’ अनवर ने ‘न’ में सिर हिलाया तो वह बोली, ‘‘पिछले हफ्ते से बोल रही हूं. सब के काम करते हो, एक मेरी सलवार खोलने का समय नहीं है तुम्हारे पास? अभी खोलो मेरी सलवार. मैं अब और इंतजार नहीं कर सकती. जल्दी करो भई.’’ मुंह में पान भरा होने के कारण अनवर मुसकराता रहा और हम उस समय थोड़ा इधरउधर हो कर मुंह दबा कर हंसते रहे. दरअसल, वह अपनी सलवार में कुछ सुधार करवाने आई थी जो शायद उस ने अनवर से सिलवाई होगी. वह सलवार उसे टाइट हो रही थी.

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