नोटबंदी की पहली सालगिरह पर इस एक साल में देश में थोक में अर्थशास्त्री पैदा हुए. इन में से एक महत्त्वपूर्ण व ताजा नाम रेलमंत्री पीयूष गोयल का है. बकौल गोयल, नौकरी जाना यानी बेरोजगारी का बढ़ना अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत है. इस अटपटी राय को लोग भौचक्के हो कर देख रहे हैं कि अब इस का क्या मतलब निकालें, यह तो एकदम नई व्याख्या है.

इस बेबाक और बेतुकी बयानबाजी के लिए पीयूष, भारतरत्न नहीं तो पद्म विभूषण के हकदार तो हैं. मोदी की भक्ति और निष्ठा की तमाम हदें पार करते उन्होंने राजनीतिक और आर्थिक क्रूरता को भी पार कर दिया है. एक अच्छी अर्थव्यवस्था में सभी हाथों के लिए काम होना एक आदर्श स्थिति है पर यहां तो हाथ काटे जाने की बात की जा रही है. हो सकता है 2019 का आम चुनाव आतेआते अर्थव्यवस्था की यह नई परिभाषा शबाब पर हो. वैसे भी उन्होंने अमित शाह के पुत्र की पैरवी सरकारी मंच से कर के मंत्री पद की परमानैंसी पक्की कर ली है.

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