योजना आयोग को खत्म करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इरादे से उन लोगों में मायूसी है जो सरकारी पैसे पर गिद्ध दृष्टि रखते हैं. इस आयोग के बारे में आमतौर पर लोग यही जानते हैं कि यह देश के भले और विकास की योजनाएं बनाता है और इस के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया हुआ करते थे जिन्होंने शराफत दिखाते हुए लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद इस्तीफा दे दिया था. योजना आयोग जैसी दर्जनों सरकारी एजेंसियां सफेद हाथी ही साबित हुई हैं जो राजनीतिक उद्देश्यों को ले कर बनती हैं, इन के खुद के खर्च भी भारीभरकम होते हैं. जनता के पैसे को बरबादी से बचाने के लिए आइडिया अच्छा है बशर्ते कोई दूसरी वैकल्पिक एजेंसी खड़ी न की जाए. बेहतर होगा यदि योजनाएं आम जनता से ही बनवाई जाएं.

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