अब तक गांव का गरीब और कमजोर रोजगार की तलाश में शहरों में?भटकता था और रोजीरोटी का जुगाड़ होने के बाद बेहतर भविष्य के लिए शहरों में ही पूरी तरह पलायन कर जाता था. लेकिन अब स्थिति बदलने लगी है. ‘इतिहास स्वयं को दोहराता है’ वाली कहावत सच होती दिखाई दे रही है. जीवन को आसान और आरामदायक बनाने के नाम पर शहरों को बरबाद कर चुकी धुरंधर कार निर्माता कंपनियां अब गांव की तरफ रुख कर रही हैं. उन का यह रुख चालाकीभरा है. वे गांव को सिर्फ कमाई के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश में हैं. ये कंपनियां गांव में आम आदमी को रोजगार देने नहीं जा रही हैं बल्कि गांव की संपन्नता का दोहन करने के लिए वहां पहुंचने की रणनीति बना रही हैं. इन के कारखाने शहरों और महानगरों में ही रहेंगे, लेकिन बाजार गांव होगा.
कार निर्माता कंपनियों का कहना है कि गांव में संपन्नता है. संयुक्त परिवार की परंपरा है और अच्छा बाजार भी है इसलिए कसबों व?छोटे शहरों में?डेरा डाल कर उन तक पहुंचना है. महानगरों में कारों की बिक्री का आंकड़ा कुछ कमजोर हो रहा है लेकिन गांव में 2011 में कारों की बिक्री 15 फीसदी बढ़ी है. वर्ष 2012 में यह 17 प्रतिशत रही और 2014 तक इस के 20 फीसदी तक पहुंचने की उम्मीद है. तेजी से बढ़ रहे ग्रामीण बाजार को कंपनियां भुनाना चाहती हैं और लगभग हर मौडल की कार गांव तक पहुंचाना चाहती हैं.