बीएचयू के कुछ छात्रों ने स्टार्टअप के जरिए 'शुरुआर्ट' नाम से ऑनलाइन मार्केटिंग कंपनी बनाने के बाद युवा कलाकारों के हुनर को दुनिया के बाजार में पहुंचाने के साथ मुंह मांगी कीमत पर बेचने का काम प्रारंभ किया. चंद महीने पहले साइबर दुनिया में पहुंचे 'शुरुआर्ट' के जरिए अब तक सौ से ज्यादा पेटिंग्स बिक चुकी है. बीएचयू के दृश्यकला संकाय में पढ़ने वाले छात्रों के कैनवास पर बिखरे हुनर के कद्रदान देश ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में मिल रहे हैं.

आईआईटी बीएचयू के टेक्नॉलजी बिजनस इंक्यूवेटर के सहयोग से सना सबा,उदिता टिकमानी,नेहा वशिष्ठ व गौरव तिवारी ने सबसे पहले 'शुरुआर्ट' नाम से कंपनी बनाई. इसका मकसद बीएचयू के साथ महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के दृश्यकला संकाय से जुड़े छात्र-छात्राओं की पेटिंग्स को ऑनलाइन बेचना था ताकि युवा कलाकारों को अपनी कला का उचित दाम मिल सके. छात्रों द्वारा मिलकर बनायी गयी इस कंपनी की सीईओ सना सबा एक महीने के भीतर दुनिया के कई देशों से मिले रिस्पॉन्स को लेकर काफी उत्साहित हैं. वह कहती है इस वेबसाइट को कला से जुड़े छात्रों के लिए बनाने का आइडिया हिट रहा. अब तक सौ से ज्यादा कलाकृतियां दुनिया के बाजार में बिक चुकी है.

छात्रों द्वारा बनाई गई इस वेबसाइट पर कलाकारों की पेटिंग्स के साथ कलाकार का नाम और दाम लिखने के साथ विषय के बारे में प्रकाश डाला गया है. छात्रों ने बताया कि किसी भी कलाकार की पेटिंग जितने में बिकती है उसका 70 प्रतिशत कलाकारों को दिया जाता है. 30 फीसदी पैसा कंपनी को चलाने के लिए खर्च के रूप में अपने पास रखा जाता है. एक हजार से डेढ़ हजार रुपए में इस साइट पर जाकर आप घर बैठे अपनी पसंद की पेटिंग्स को खरीद सकते हैं.

बनारस के घाटों की ज्यादा पेटिंग्स

काशी में कूंची से जुड़े कलाकारों के लिए पेटिंग्स के लिए विषय वस्तु के रूप में पहली पसंद गंगा घाट होते हैं. बीएचयू छात्रों के सामूहिक प्रयास से खड़े हुए 'शुरुआर्ट' में भी बनारस के घाटों की सबसे ज्यादा पेटिंग्स दिखाई पड़ रही है. बीएचयू की छात्रा उदिता टिकमानी बताती है कि गंगाघाट दुनिया के पर्यटकों को जिस तरह लुभाते है उसी तरह पेटिंग्स भी दुनियाभर में कला के कद्रदानों को भाती है,इसलिए सबसे ज्यादा वही हैं.

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