देश के अंदर हवाई यात्रा महंगी हो सकती है. सिविल एविएशन मिनिस्ट्री पैसेंजर सर्विस फीस (पीएसएफ) बढ़ाने पर विचार कर रही है. यह फीस हर डोमेस्टिक टिकट पर ली जाती है. हर टिकट पर 130 रुपये की पीएसएफ लगती है. इससे जो पैसा मिलता है, उसका इस्तेमाल देश में एयरपोर्ट्स की सुरक्षा के लिए किया जाता है. 2002 से अभी तक यह चार्ज बढ़ाया नहीं गया है.
नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया(एएआई) और दिल्ली एवं मुंबई के प्राइवेट ऑपरेटर्स के पीएसएफ के जरिए जुटाए गए फंड से सिक्यॉरिटी की लागत नहीं निकल पाने के कारण इसमें बढ़ोतरी की शुरुआत की गई थी.’ हालांकि अधिकारी ने यह भी कहा कि पीएसएफ में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी नहीं होगी.
पीएसएफ के जरिए जुटाए गए फंड का इस्तेमाल एयरपोर्ट्स पर तैनात सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्यॉरिटी फोर्स (सीआईएसएफ) के लोगों को सैलरी देने में किया जाता है. एयरपोर्ट्स पर बैगेज की जांच और दूसरे इक्विपमेंट पर भी यह रकम खर्च की जाती है. एयरपोर्ट पर सिक्यॉरिटी का टोटल खर्च 1300 करोड़ रुपए है जबकि पीएसएफ के जरिए जुटाई गई रकम इससे 400 करोड़ रुपए कम है. टोटल शॉर्टफॉल में से एएआई का डेफिसिट सालाना 150 करोड़ रुपए है, जिसका भुगतान वह अपने पास पड़े फंड से करती है. बाकी रकम दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट चलाने वाले प्राइवेट ऑपरेटर्स देते हैं.
टर्मिनल 2 शुरू होने से पहले तक मुंबई एयरपोर्ट प्रॉफिटेबल हुआ करता था. हालांकि, इसके बनने के बाद एयरपोर्ट पर सिक्यॉरिटी का खर्च बढ़ गया. इस मामले में ज्यादा जानकारी के लिए दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट को भेजी गई ईमेल या मेसेज का कोई जवाब नहीं मिला. सूत्रों का कहना है कि कोच्चि, हैदराबाद और बेंगलुरु तीन ऐसे एयरपोर्ट्स हैं, जो पीएसएफ से होने वाली पूरी कमाई खर्च नहीं कर पाते.
प्राइवेट एयरपोर्ट्स के पीएसएफ कलेक्शन प्राइवेट ऑपरेटर के खाते में आते हैं और एएआई के एयरपोर्ट्स पर जुटाया गया फंड सरकार के एयरपोर्ट अकाउंट में जाता है. पीएसएफ से जुटाया गया फंड अगर घटता है तो भी उसकी जिम्मेदारी वहां के एयरपोर्ट ऑपरेटर की होती है. इसी तरह अगर फंड ज्यादा होता है तो भी वह एयरपोर्ट ऑपरेटर्स को मिलता है. एयरपोर्ट चलाने वाली कंपनियां इस रकम का इस्तेमाल सिर्फ सिक्यॉरिटी के लिए कर सकती हैं.