जब भी नेता वोट मांगने के लिए सड़कों पर निकलते हैं, ऐसा लगता है कि इससे इंडस्ट्रियल सेक्टर की ग्रोथ तेज होती है. इकनॉमिक डेटा इसकी गवाही दे रहे हैं. कोर सेक्टर की ग्रोथ मार्च में 6.4% रही. इस सेक्टर को इंडस्ट्रियल सेक्टर का अहम पैमाना माना जाता है. मार्च में कोर सेक्टर की रफ्तार पिछले 16 महीनों में सबसे तेज रही है.

इलेक्शन कमीशन ने असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी के चुनावों की तारीख का ऐलान 4 मार्च को किया था. कोर सेक्टर में इसी तरह की तेजी फरवरी 2014 में भी आई थी, जिसके बाद अप्रैल और मई में लोकसभा चुनाव हुए थे. उस वक्त कोर सेक्टर की ग्रोथ 6.1% पहुंच गई थी.

वहीं, सितंबर 2013 में दिल्ली, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले इसकी रफ्तार में 9% की बढ़ोतरी हुई थी, जो जनवरी 2010 के बाद सबसे तेज ग्रोथ थी.

चुनाव और कोर सेक्टर के बीच क्या रिश्ता है? दरअसल, चुनाव प्रचार के दौरान गाड़ियों का जमकर इस्तेमाल होता है. इस बार कमर्शियल व्हीकल सेल्स में बढ़ोतरी और रोड प्रोजेक्ट्स पर काम तेज होने से भी रिफाइनरी प्रॉडक्शन पर पॉजिटिव असर पड़ा है. कोर सेक्टर इंडेक्स में रिफाइनरी वेटेज के लिहाज से तीसरे नंबर पर है.

मार्च में पेट्रोल, डीजल सहित रिफाइनरी प्रॉडक्शन में 10.8% की बढ़ोतरी हुई, जो दिसंबर 2012 के बाद सबसे अधिक है. साल भर पहले इसी अवधि में इसमें 1.5% की गिरावट आई थी. उसके बाद नवंबर 2015 तक इसमें लगातार बढ़ोतरी हुई. मार्च में पेट्रोल सेल्स बढ़कर 20.4 लाख टन हो गई, जो अब तक का रिकॉर्ड है.

पेट्रोलियम मिनिस्ट्री की डिवीजन पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल का कहना है कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रचार के चलते रिफाइनरी वॉल्यूम में बढ़ोतरी हुई है.

वहीं, सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स के मुताबिक, मार्च में व्हीकल प्रॉडक्शन में सालाना 12.8% का इजाफा हुआ. कई क्षेत्रों में रोड रिपेयर और सड़कों को चौड़ा करने का काम भी शुरू हुआ है. चुनाव से पहले अक्सर ऐसे काम में तेजी आती है. इससे डीजल की खपत बढ़ी है. रोड बनाने में इस्तेमाल होने वाले बिटुमेन में मार्च में 16.9% और फ्यूल ऑयल में 39.4% का इजाफा हुआ है.

 

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