केंद्रीय सरकार अर्थव्यवस्था की तरक्की पर इन दिनों खूब इतरा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री अरुण जेटली अपनी पीठ ठोंकते दिखाई दे रहे हैं. मोदी देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार को एक अद्भुत घटना करार देते हुए कहते हैं, ‘‘भारत ने साबित कर दिया है कि एक बड़ा लोकतंत्र भी तेजी से आर्थिक प्रगति हासिल कर सकता है.’’
अरुण जेटली कहते हैं, ‘‘हमारी अर्थव्यवस्था अन्य देशों की तुलना में अधिक ऊंचे और स्थिर मुकाम पर है.’’ विशाखापट्टनम में सीआईआई साझेदारी सम्मेलन में वे बोले, ‘‘कठिन दौर में भी भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन अच्छा रहा है. भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सब से तेज विकास दर वाली अर्थव्यवस्था बनी हुई है. 7-7.5 फीसदी विकास दर की वजह से हम दुनिया में एक आकर्षक देश बने हुए हैं.’’ इंडिया इन्वैस्टमैंट समिट में जेटली ने फरमाया कि देश की माली हालत सुधर रही है, देश सही दिशा में तरक्की कर रहा है.
देश की अर्थव्यवस्था पर सरकार का इतना उछलना, इतराना खयाली पुलाव पकाना भर है. यह 2003-04 में वाजपेयी सरकार की ‘शाइनिंग इंडिया’ जैसी खुशफहमी है. तब ऐसी ही खुशफहमी में भाजपा समय से पहले लोकसभा चुनाव करवा बैठी थी, नतीजतन बुरी तरह हारी थी.
यह कैसा विकास
देश में कैसी आर्थिक तरक्की, कौन सा विकास, किस का विकास हो रहा है? आर्थिक खबरों और आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि देश के आम, मध्यम और गरीब परिवार मौजूदा अर्थव्यवस्था में कोई राहत महसूस नहीं कर रहे. व्यापारी मंदी का रोना रो रहे हैं. नौकरीपेशा वालों के दिन कहीं से अच्छे दिखाई नहीं दे रहे. छंटनी से बेकारी की समस्या बढ़ रही है. युवाओं के लिए रोजगार के नए रास्ते नहीं खुल रहे. किसानों द्वारा आत्महत्या किया जाना रुक नहीं रहा. थोक मूल्य सूचकांक नकारात्मक बना नजर आता है. खाद्य क्षेत्र में महंगाई कम नहीं हुई है.
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