अनिवार्य अंशदायी पैंशन और बीमा योजना प्रदान करने वाला सरकारी क्षेत्र का कर्मचारी भविष्यनिधि संगठन यानी ईपीएफओ दुनिया का सब से बड़ा संगठन है. सदस्य संख्या और वित्तीय लेनदेन के मामले में इस से बड़ा और कोई संगठन दुनिया के किसी भी देश में नहीं है. संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए वेतन की न्यूनतम सीमा 15 हजार रुपए प्रतिमाह से बढ़ा कर 21 हजार रुपए करने की श्रमिक संगठनों की मांग मानने से केंद्र सरकार ने इनकार कर दिया है. सरकार के इस फैसले से करोड़ों कर्मचारियों के हितों को नुकसान पहुंचा है. इस आशय का प्रस्ताव ईपीएफओ ने कर्मचारी संगठनों के माध्यम से केंद्र को सौंपा था, लेकिन सरकार का कहना है कि ईपीएफओ से 5 करोड़ से अधिक कर्मचारी जुड़े हैं और उन का न्यूनतम वेतन बढ़ाने से सरकारी खजाने पर भी बड़ा असर होगा.
इस के साथ ही निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की न्यूनतम पैंशन 1 हजार रुपए से बढ़ा कर 3 हजार रुपए करने के प्रस्ताव को भी अस्वीकार कर दिया गया है. सरकार 15 हजार से कम वेतन पर 1.16 प्रतिशत राशि पैंशन में देती है जिस के कारण सरकारी खजाने पर हर साल 3 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ता है और यदि नए प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है तो यह बोझ कई गुना बढ़ जाएगा. इसलिए सरकार फिलहाल न्यूनतम वेतन वृद्धि के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर रही है.
सरकार का यह तर्क बेतुका है. महंगाई आसमान छू रही है और इस से लोगों का जीवन दूभर हो रहा है. एक तरफ सरकारी कर्मचारियों का वेतन संगठित क्षेत्र के न्यूनतम वेतन से कई गुना ज्यादा है और दूसरी तरफ इस क्षेत्र के लिए मामूली वेतनवृद्धि की मांग ठुकराई जा रही है. इस से समाज में असमानता की खाई और चौड़ी हो रही है.