प्यार के साथ सामाजिक मुद्दो को उकेरने मे फिल्मकार शशांक खेतान को महारत हासिल है. इस बात को वह 2014 में प्रदर्शित अपनी पहली फिल्म ‘‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया’’ और 2017 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’’ से साबित कर चुके हैं. इन दोनों ही फिल्मों ने बाक्स आफिस पर जबरदस्त सफलता बटोरी थी. इन दोनों ही फिल्मों का मौलिक लेखन खुद शशांक खेतान ने किया था. अब वह अपनी तीसरी फिल्म ‘‘धड़क’’ में प्यार के साथ ही ‘औनर किलिंग’ का ज्वलंत मुद्दा भी लेकर आए हैं, जिसे नागराज मंजुले ने अपनी मराठी भाषा की सफलतम फिल्म ‘‘सैराट’’ में उठाया था और ‘धड़क’’, ‘सैराट’ पर आधारित फिल्म है. इस तरह ‘धड़क’ शशांक खेतान के करियर की पहली फिल्म है, जिसका मौलिक लेखन उन्होंने नहीं किया. मगर शशांक खेतान का दावा है कि यह ‘सैराट’ पर आधारित होते हुए भी नई और उनके अंदाज की फिल्म है.

नागराज मंजुले निर्देशित मराठी भाषा की फिल्म ‘‘सैराट’’ देखने के बाद किस बात ने आपको इतना प्रभावित किया कि आपने उसका रीमेक धड़क के नाम से बनाने की सोची?

किसी एक प्वाइंट को मैं हाईलाइट नहीं कर सकता. जब मैंने अपनी मां के साथ नासिक के थिएटर में ‘सैराट’ देखी, तो मैं शाक्ड रह गया था. फिर मेरे दिमाग में आया कि ‘सैराट’ की कहानी में जिस तरह के रिश्तों, जिस तरह के कंफलिक्ट की बात की गयी है, उस पर मैं भी अपनी बात रखूं. उसके बाद मैंने कहानी लिखनी शुरू की. मुझे खुशी है कि मैंने ऐसी कहानी लिखी, जिसमें ‘रूह’ तो ‘सैराट’ की है, पर कहानी मेरे अपने अंदाज की है. यह हमारी अपनी खुद की ‘धड़क’ है. मेरी राय में हर फिल्म का काम होता है कि वह दर्शक को सोचने पर मजबूर कर दे. ‘सैराट’ ने मुझे इस कदर सोचने पर मजबूर किया कि मैं ‘धड़क’ लेकर आ गया.

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