देश की जेलों में ऐसे लाखों कैदी बंद हैं, जिन्हें अदालत के इस फैसले का इंतजार है कि उन्होंने अपराध किया है या नहीं. ऐसे ही अंडर ट्रायल कैदियों की व्यथा को पेश करने वाली फिल्म है-कैदी बैंड. जो कि एक अति महत्वपूर्ण मुद्दे पर स्तरहीन फिल्म है. फिल्मकार हबीब फैजल का ध्यान अंडर ट्रायल के गंभीर मुद्दे की बजाय महज संजू व बिंदू की प्रेम कहानी को पेश करना ही रहा.

फिल्म की कहानी संजू (आदर जैन) और बिंदू (आन्या सिंह) के इर्द गिर्द घूमती है, जो कि जेल में बंद अंडर ट्रायल कैदी हैं. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर संगीत कार्यक्रम पेश करने के लिए जेलर (सचिन पिलगांवकर) सात सदस्यीय संगीत प्रधान बैंड बनाता है, इन सात लोगों में संजू और बिंदू भी शामिल हैं. 15 अगस्त के समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आए मंत्री इस बैंड को चुनाव होने तक जिंदा रखना चाहते हैं. इसी के चलते जेलर इनकी जमानत की अर्जी रोक देता है. इसका फायदा उठाकर यह बैंड पूरे संसार में लोकप्रिय हो जाता है. वहीं संजू और बिंदू के बीच प्रेम कहानी पनपती रहती है. फिर यह दोनों पूरे विश्व के लोगों को अंडर ट्रायल लोंगो की समस्या से अवगत कराने के लिए एक दिन जेल से भागने का प्रयास करते हैं.

पूरी फिल्म अस्वाभाविक घटनाक्रमों व किरदारों से युक्त है. अंडर ट्रायल कैदियों की हालत को भी बहुत ही ज्यादा सतही स्तर पर पेश किया गया है. लगता है कि खुद फिल्मकार इस समस्या से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं. फिल्मकार ने यह बताकर अपनी जिम्मेदारी को खत्म मान लिया कि अदालतों में जजों की संख्या के चलते ‘अंडर ट्रायल कैदियों’ की संख्या बढ़ते हुए विकराल समस्या बनी हुई है. इसके अलवा फिल्मकार ने इस बात पर ध्यान दिया कि गरीब लोगों के लिए न्याय पाना ज्यादा कठिन है. फिल्म को एडिट कर ठीक किया जा सकता था.

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