कलाकार- ईशा गुप्ता, मुरारी शर्मा, जरीना वहाब, राजेश शर्मा, जाकिर हुसेन, दीपशिखा नागपाल, परीक्षत साहनी, अनंत महादेवन व अन्य.

निर्देशक व निर्माता- अशोक कुमार नंदा

बौलीवुड में कानून, अदालत व सिस्टम पर सवाल उठाने वाली फिल्म बनती रही हैं, मगर अब तक किसी भी फिल्मकार ने अपनी फिल्म में इस बात का चित्रण ही किया कि यदि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश किसी निर्दोष को सजा दें और मुलजिम को बरी कर दें, तब क्या होगा? मगर फिल्मकार अशोक कुमार नंदा ने अपनी फिल्म ‘‘वन डे जस्टिस डिलिवर’’ में इसी बात को रेखांकित करते हुए अदालती कार्यप्रणाली और सिस्टम पर कई सवाल खड़े किए हैं. इस फिल्म में उच्च न्यायालय के जज को एक मां अपने बेटे के हत्यारों को बरी करने वाले जज को अदालत में ही थप्पड़ मारती है, जज को गलती का अहसास होता है, पर उस वक्त वह कानून के दायरे में बंधा होता है. मगर न्यायाधीश के पद से अवकाशग्रहण करते ही वही जज उन चारों आरोपियों को अपने रीके से सजा देता है, जिन्हें उसने बेगुनाह बताकर बरी किया था.

Director-Ashok-Nanda-with-Anupam-Kher-and-Kumud-Mishra-explaining-scene-on-set-of-movie-One-Day-00

फिल्म ‘‘वन डे जस्टिस’’ के निर्देशक व निर्माता अशोक कुमार नंदा किसी परिचय के मोहताज नहीं है. मूलतः उड़ीसा निवासी और पंद्रह साल तक अमरीका में साफ्टवेअर इंजीनियर के रूप में नौकरी कर चुके अशोक कुमार नंदा बताते हैं- ‘‘मैंने वहां पर रहते हुए सबसे पहले एक अफगान इंडो फिल्म ‘फासयर डांस’ का निर्देशन किया. यह फिल्म अफगानी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का मिश्रण थी. युद्ध की पृष्ठभूमि में अमरकी जिंदगी जी रहा एक अफगानी युवक किस तरह तालिबानी बनने निकलता है, उसकी कहानी है. एक यथार्थत जिंदगी की कहानी थी. यह कहानी जिस इंसान पर बनी थी, उसका भाई इस फिल्म का निर्माता था. मैंने इसका निर्देशन किया था. इस फिल्म को आस्कर अवार्ड के लिए नोमीनेट भी किया गया. उसके बाद मैंने हिंदी फिल्म ‘हम तुम और मैं’ का निर्देशन किया. इस फिल्म में कृष्णा अभिषेक हीरो थे. उसके बाद मैं फिर अमरीका चला गया. मैंने फिल्म बनाने के लिए किसी से आर्थिक मदद नही ली. मैं जो कमा रहा था, वही फिल्म निर्माण में लगा रहा था. तीन साल बाद 2012 में वापस आया और मैंने फिल्म ‘रिवाज’ बनायी, जिसे कई नेशनल व इंटरनेशनल अवार्ड मिले. तब मुझे लगा कि मुझे यही काम करना चाहिए. और मैंने अमरीका जाकर नौकरी छोड़ी. अपनी कंपनी दूसरे इंसान को बेचकर 2014 में हमेशा के लिए मुंबई आ गया. 2016 में मुझे एक कहानी मिली, जिस पर मैंने फिल्म बनायी ‘‘ वन डे जस्टिस डिलिवर’’ बनायी है.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...