फिल्म ‘फिल्मिस्तान’ से चर्चित होने वाले निर्देशक और पटकथा लेखक नितिन कक्कड़ मुंबई के है. उन्हें हमेशा से कुछ अलग काम करने की इच्छा थी और इसी वजह से उन्होंने लीक से हटकर फिल्में बनायी और सफल रहें. उनकी फिल्म ‘फिल्मिस्तान’ ने कई अवार्ड जीते और उन्हें अच्छा काम करने का हौसला मिला. उनकी फिल्म ‘नोटबुक’ रिलीज पर है, जिसमें उन्होंने प्यार को एक अलग अंदाज़ में परिभाषित करने की कोशिश की हैं. उनसे मिलकर बात हुई,पेश है अंश.
बिना किसी को देखे ‘लव स्टोरी’ को दिखाना, आज के परिप्रेक्ष्य में कितना मायने रखती है?
प्यार तो प्यार है, ये कभी भी हो सकता है. पहले आप सूरत से प्यार करते हैं फिर सीरत से और ये हमेशा से होता आया है. जब आप किसी के लिखावट से प्यार करते हैं, तो दिमाग में उस व्यक्ति की एक छवि बन जाती है और फिर आप उससे मिलने की कोशिश करते हैं. ये आज भी होता है. केवल उसका माध्यम अब सोशल मीडिया ने ले लिया है.
आज प्यार की परिभाषा बदल चुकी है, आपने इस फिल्म में इसे कैसे दिखाने की कोशिश की हैं?
आजकल लव में लस्ट अधिक हो चुका है, पर मैंने इस फिल्म में प्यार के असली रूप को दिखाने की कोशिश की है. आज की जेनरेशन ‘मूव औन’ वाली है, जो किसी चीज की परवाह किये बिना आगे निकल जाती है और वे ‘ट्रायल एन एरर’ के सिद्धांत पर चलती है, जो कभी ठीक होता है, तो कभी गलत. मैंने ऐसे कई ओल्ड कपल को देखे है, जो रोज सुबह साथ में टहलते हैं और मुझे उस दृश्य को देखना बहुत अच्छा लगता है. मैं आज भी इस ओल्ड स्कूल थाट पर विश्वास करता हूं.
इस फिल्म की शूटिंग कश्मीर में हुई है, क्या कोई समस्या आई?
मैं 60 दिन वहां रहा और 44 दिन मैंने शूटिंग की है. इससे पहले कई बार वहां जा चुका है. मुझे कोई परेशानी नहीं हुई. एक दिन तो मैंने अखबार में कर्फ्यू लगा देखा और लगा कि शूट नहीं कर पाऊंगा, फिर पता चला कि वह एक छोटे से हिस्से में ही था और मैंने अपना काम जारी रखा. आजकल अधिकतर मीडिया अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से नहीं निभाती, ऐसे में सही जानकारी लोगों को नहीं मिल पाती. मैं सबसे कहना चाहता हूं कि एक बार आप कश्मीर अवश्य जाएं और देखे कि वहां के लोगों में कितना प्यार है. समस्या है, पर इतना नहीं कि आप वहां जा न सकें. दरअसल कुर्सी का खेल बहुत भयंकर होता है.
पकिस्तान में बौलीवुड फिल्मों को बैन करना, इससे आप कितना सहमत है?
ये दुःख की बात है कि ऐसा हो रहा है. असल में किसी की लाठी किसी और पर चलाया जा रहा है. मैं आतंकवाद के खिलाफ हूं और ये मानता हूं कि आतंकवाद की कोई जाति या धर्म नहीं होती. कोई भी ऐसा देश नहीं है ,जो इसे बढ़ावा दें. एक जंग से कई और जंग होती है और इसका लाभ किसी को भी नहीं होता.
इस फिल्म में आपने दो नए कलाकारों का परिचय करवाया है, नए कलाकारों के साथ काम करना कितना मुश्किल या आसान होता है?
नए कलाकार एक सकारात्मक सोच और जोश के साथ काम करते हैं, जैसे आप उसे ढाल देंगे वैसे ही वे काम करेंगे. तकनीकि काम में थोड़ी मुश्किल होती है,क्योंकि वे उससे परिचित नहीं होते, उन्हें वह सब सिखाना पड़ता है. इसके अलावा किसी भी नए चेहरे के साथ काम करते वक्त मेरी जिम्मेदारी बढ़ जाती है,क्योंकि पहली फिल्म के ऊपर उनका पूरा कैरियर निर्भर करता है.
क्या इस फिल्म को बनाते समय मुश्किलें आई?
हर दिन कुछ न कुछ समस्या आती रही. कश्मीर की शूटिंग है, इसलिए हर दिन सूरज के निकलने का इंतज़ार करना पड़ता था. हमारे सूची के अनुसार काम नहीं हो पाता था, इसलिए फिर स्क्रिप्ट को मौसम के अनुसार बदलना पड़ता था. इसके अलावा हमारी टीम में काफी कश्मीरी लोग काम करते थे. उन्हें तकनीक के बारें में जानकारी देनी पड़ती थी.
कश्मीरी लोगों के साथ काम करते हुए वहां के लोगों की रोजीरोटी की समस्या के बारें में कुछ जानकारी मिली?
वहां पर कई सालों से राजीतिक उठापटक चल रही है, ऐसे में उनकी रोजीरोटी का जरिया, जो पर्यटन थी, उसे काफी अघात लगा. वे अब शांति चाहते है. वहां रोजगार नहीं है, इससे उनकी शादियां नहीं होती. एक लड़के से जब मैंने उसके शादी की बात पूछा तो उसने कहा कि वह शादी नहीं कर सकता, क्योंकि वहां वह 365 दिन में केवल 100 दिन ही काम कर पाता है और बाकी दिन मौसम और माहौल ठीक नहीं रहने के कारण उसका पेट भरना ही मुश्किल हो जाता है, शादी कर दो लोगों का पेट कैसे भरेगा, ऐसे में मीडिया की जिम्मेदारी है कि वे उनका साथ दें और उन्हें इस मुश्किल घडी से उबारें.
फिल्म में अवार्ड का मिलना, एक निर्देशक को कितना प्रेरित करता है?
मुझे जब फिल्म ‘फिल्मिस्तान’ में अवार्ड मिला, तो मुझे पहले पता नहीं था, क्योंकि दो साल की मेहनत के बाद मैंने उस फिल्म को बनायीं थी. अवार्ड मिलने से मैंने जो मेहनत की थी, उसे सराहा गया. इससे और अच्छा काम करने की प्रेरणा मिली.
फिल्म अगर नहीं चलती, तो उसकी जिम्मेदारी भी निर्देशक को ही माना जाता है, आप इससे कितना सहमत है?
मैं बिल्कुल सहमत हूं, क्योंकि सफलता आपके सर के ऊपर से नहीं जानी चाहिए ,जबकि असफलता को दिल तक पहुंचने नहीं देना चाहिए. मैं आगे भी फिल्म ईमानदारी से बनाऊंगा और फल की इच्छा नहीं करूंगा.
आगे की योजनाएं क्या है?
मैं एक फिल्म अमृतसर पर ‘औपरेशन ब्लू स्टार’ पर बनाना चाहता हूं. वह मैं लिख रहा हूं. मैं पंजाबी हूं और इसे लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करना चाहता हूं.